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अध्यात्म और विज्ञान
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हैं । असंख्य योजन तक यह घटना घटित होती है। लोगों ने इस उल्लेख को कपोल-कल्पित बताया। किन्तु जब विज्ञान ने ध्वनि तरंगों की द्रुतगातिमा के सिद्धान्त का प्रतिपादन किया, तब यह सत्य भी प्रमाणित हो गया । आज यह ध्वनि - विज्ञान महानतम उपलब्धि माना जाता है ।
जब तक व्यक्ति सूक्ष्म पर्यायों की ओर प्रस्थान नहीं करता तब तक सचाई को नहीं पा सकता। जब तक अनेकान्त की दृष्टि का विकास नहीं होता तब तक उस दिशा में प्रस्तान नहीं हो सकता ।
एस्ट्रल प्रोजेक्शन और समुद्घात
एक हब्शी महिला है । उसका नाम है- लिलियन । वह अतीन्द्रिय प्रयोगों में दक्ष है। उससे पूछा गया- तुम अतीन्द्रिय घटनाएं कैसे बतलाती हो? उसने कहा, मैं एस्ट्रल प्रोजेक्शन के द्वारा उन घटनाओं का जान लेती हूं । प्रत्येक प्राणी में प्राण धारा होती है । उसे एस्ट्रला बॉडी भी कहा जाता है। एस्ट्रल प्रोजेक्शन के द्वारा मैं प्राण शरीर से बाहर निकल कर, जहां घटना घटित होती हैं, वहां जाती हूं और सारी बातें जानकर दूसरों को बता देती हूं।'
विज्ञान द्वारा सम्मत यह एस्ट्रल प्रोजेक्शन की प्रक्रिया जैन परंपरा की समुद्घात प्रक्रिया है । समुद्घात का यही तात्पर्य है कि जब विशिष्ट घटना घटित होती है तब व्यक्ति स्थूल शरीर से प्राणशरीर को बाहर निकाल कर घटने वाली घटना तक पहुंचाता है और घटना का पूरा ज्ञान कर लेता है । यह प्राणशरीर बहुत दूर तक सकता है। इसमें अपूर्व क्षमताएं हैं ।
समुद्घात सात हैं - वेदना समुद्घात, कषाय समुद्घात, मारणान्तिक समुद्घात, वैक्रिय समुद्घात, तैजस समुद्घात, आहारक समुद्घात, और केवली समुद्घात । ब व्यक्ति को क्रोध अधिक आता है तब उसका प्राण शरीर से बाहर निकल जाता है I यह कषाय समुद्घात है । जब आदमी के मन में अति लालच आता है तब भी प्राण-शरीर से बाहर निकल जाता है। इसी प्रकार भयंकर बीमारी में, मरने की अवस्था में भी प्राण शरीर बाहर निकल जाता है। आज के विज्ञान के सामने ऐसी अनेक घटनाएं घटित हुई हैं।
एक रोगी ऑपरेशन थियेटर में टेबल पर लेटा हुआ है। उसका मेजर ऑपरेशन होना है। डॉक्टर ऑपरेशन कर रहा है। उस समय उस व्यक्ति में वेदना समुद्घात घटित हुई । उसका प्राण-शरीर स्थूल शरीर से निकलकर ऊपर की छत के आसपास स्थिर हो गया। ऑपरेशन चल रहा है और वह रोगी अपने प्राण शरीर से सारा ऑपरेशन देख रहा है। ऑपरेशन करते-करते एक बिन्दु पर डॉक्टर ने गलती
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