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________________ ४८ जैन दर्शन और विज्ञान दी और अतीन्द्रिय ज्ञान के विकास करने का अभ्यास भी खो दिया, पद्धति भी विस्मृत हो गई। अब सिवाय विज्ञान के कोई साधन नहीं है। वैज्ञानिकों ने कोई साधना नहीं की, अध्यात्म का गहरा अभ्यास नहीं किया, अतीन्द्रिय चेतना को जगाने का प्रयत्न नहीं किया, किन्तु इतने सूक्ष्म उपकरणों का निर्माण किया, जिनके माध्यम से अतीन्द्रिय सत्य खोजें जा सकते हैं, देखे जा सकते हैं। वे सारे सत्य इन सूक्ष्म उपकरणों से ज्ञात हो जाते हैं। इसका फलित यह हुआ है कि आज का विज्ञान अतीन्द्रिय तथ्यों को जानने-देखने और प्रतिपादन करने में सक्षम है। आइन्स्टीन ने एक बार कहा था-"हम लोग वैज्ञानिक दावे तो बहुत बड़े -बड़े करते हैं, लेकिन हमारे पास जानने के साधन इन्द्रियां और मन इतने दुर्बल हैं कि हमें अनेक बार भ्रांति में डाल देते हैं।" यह बिलकुल सत्य है लोग कहते हैं। आखों-देखी बात झूठी हो सकती है? लेकिन सत्य यह है कि ऐसा अनेक बार होता है। गाड़ी में बैठे हुए लोग अनुभव करते हैं कि पेड़ दौड़ रहे हैं, गाड़ी नहीं। क्या आंखें धोखा नहीं दे रही हैं? चलते समय मार्ग में हमने देखा लगभग एक मील सीधी सड़क जो कम से कम आठ फूट चौड़ी तो होगी ही, साफ दिखाई दे रही लेकिन अन्त में उसका किनारा एक लकीर-सा दिखाई देता है। फिर हमने देखा आकाश जमीन को छूता हुआ-सा लग रहा है, लेकिन ज्योंही हम चलते-चलते उस स्थान पर पहुंचे तो देखा उस स्थान पर नहीं, और आगे वह जमीन को छू रहा है। यह आंखों का धोखा नही तो क्या है? इन्द्रियों की शक्ति अत्यन्त सीमित है। आंख में देखने की शक्ति है, पर वह एक सीमित दूरी पर ही रही हुई वस्तु को ही देख पाती है। कान में सुनने की शक्ति है, पर वह निश्चित ही फ्रीक्वेन्सी वाली शब्द-तरंग ही पकड़ पाता है। हमारे चारों ओर न जाने कितनी ध्वनियां हो रही हैं। वे कानों से टकाराती हैं। पर कान उन सारी ध्वनियों को ग्रहण नहीं कर पाता। वे ही ध्वनियां कान में ग्राह्य होती हैं जो कि निश्चित आवृति में आती हैं । शेष ध्वनियां आती हैं, टकाराती हैं और चली जाती हैं। हमारे समाने दो प्रकार के जगत है-इन्द्रिय-जगत और इन्द्रियातीत-जगत। हमारा पूरा विश्वास इन्द्रिय-जगत् में है। क्योंकि वह हमारे प्रत्यक्ष है। उससे हमारा सीधा संबंध है। उसके प्रति हमारी इतनी गहरी आस्था बन गई है कि इन्द्रियातीत की कोई बात सामने आ जाती है तो भी उस पर विश्वास नहीं होता। वह समझ में नहीं आती। इन्द्रियों से परे का जगत् बहत विराट है। इसका पूरा साक्ष्य है आज का विज्ञान । विज्ञान ने सूक्ष्म उपकरणों के माध्यम से ऐसे जगत् को खोजा है जो इन इन्द्रियों द्वारा नहीं जाना जा सकता। जो चीज आंखों के द्वारा नहीं देखी जा सकती, वह माइक्रोस्कोप के द्वारा देखी जा सकती है। विज्ञान ने इतने सूक्ष्म जगत् का पता Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003127
Book TitleJain Darshan aur Vigyan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMahendramuni, Jethalal S Zaveri
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year2008
Total Pages358
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari, Philosophy, & Science
File Size15 MB
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