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जैन दर्शन और विज्ञान क्योंकि वह जड़ है। चेतना की शक्ति ही उसका उपयोग करके विनाश ढहाती है। शक्तियों का विकास कोई दोष नहीं लेकिन उनका उपयोग सही ढंग से हो। जो विज्ञान को बुरा कहते हैं, उन्हें यह भी मानना पड़ेगा कि धर्म भी बुरा है क्योंकि उनको अलग करने का हमारे पास कोई साधन नहीं है। धर्म और विज्ञान त्रिकालाबाधित सत्य हैं, यही निष्कर्ष है।
. अध्यात्म की तरह विज्ञान का क्षेत्र भी अत्यन्त प्राचीन है। विज्ञान के लिए हजारों ने अपने आपको खपाया है। भारत में हजारों वर्ष पहले भी विज्ञान के क्षेत्र में अध्यात्म की तरह ही ऐसे-ऐसे अनुसन्धान हुए हैं; आज यदि आपके सामने उनकी उपलब्धियां रखी जाएं तो आप आश्चर्यचकित हो जाएंगे।
इसी तरह के अनुसंधान अध्यात्म-क्षेत्र में किए गए। अनेक ने गूढ साधनाएं की, तभी अध्यात्म की अनुभूतियां प्राप्त हुई। गुस्सा या आवेग जब आता है तो तत्काल दो क्षण के लिए श्वास रोक लें। गुस्सा स्वत: ठंडा पड़ जाएगा। इसी तरह के अनेक प्रयोग किए गए हैं। योगशास्त्र को जानने वाला खोज करके देखें कि प्राचीन आचार्यों ने कितने प्रयोग किए हैं। प्राचीन समय में हजारों कोस दूर बैठा साधु किसी अन्य साधु को सिर्फ याद करके उसका आसन डोला (हिला) सकता था और वह समझ जाता था कि उसे याद किया गया है।
इस दृष्टि से धर्म और विज्ञान दो धाराएं और शाखाएं नहीं हैं, एक ही चेतना-प्रवाह की दो कड़ियां हैं। मूल एक है, टहनियां दो हैं।
जिस तरह विज्ञान की उपलब्धियों का उपयोग विनाशकारी कार्यों में किया गया है, जो सर्वविदित है, उसी प्रकार धर्म का उपयोग भी अनुचित ढंग से किया गया है और कहीं-कहीं तो उसका अत्यधिक दुरुपयोग भी किया गया है। इस तरह हम देखते हैं कि विज्ञान और धर्म का क्षेत्र भिन्न-भिन्न होते हुए भी मूल एक है। और मैं तो कहता हूं यह विशाल नगरों के फ्लैट सिस्टम (Flat System) की तरह है; जहां एक मकान में कई फ्लैट होते हैं और उसमें रहने वाले वर्षों से वहां रहते हुए भी एक-दूसरे से अपरिचित-से बने रहते हैं।
धर्म से प्रभावित लोग मानते हैं-विज्ञान ने मनुष्य-जाति को संहार के कगार पर पहुंचा दिया है। विज्ञान से प्रभावित लोग मानते हैं-धर्म ने मनुष्य को परंपरावादी या रूढ़िवादी बना दिया है। इस आरोप और प्रत्यारोप में सचाई नहीं है। सचाई यह है कि धर्म और विज्ञान सत्य को उपलब्ध करने की पद्धतियां है। धर्म का रूढ़िवादी से और विज्ञान का संहारक शस्त्रों से कोई संबंध नहीं है।
जैस धर्म-स्थान धर्म नहीं है, वैसे ही प्रौद्योगिकी (टेक्नोलॉजी) विज्ञान नहीं है। जिसका उपयोग होता है, उसका दुरुपयोग भी हो सकता है। उपयोग
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