SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 60
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ अध्यात्म और विज्ञान ४५ गए। जब लोग रेल के नियमों को समझ गए, तब रेल न चमत्कार रहा, न भय रहा और न आतंक रहा। ये जितने जादू के चमत्कार हैं, जितने तन्त्र-विद्या के चमत्कार हैं, वे सारे नियमों के चमत्कार हैं। नियम के प्रतिकुल कुछ भी नहीं है। अन्तर केवल इतना ही है कि जो नियमों को जानता है, उसके लिए कोई चमत्कार नहीं है और जो नियमों को नहीं जानता, उसके लिए सब चमत्कार है। चुम्बक लौह को खींचता है। ग्रामीण व्यक्ति के लिए वह चमत्कार है। जो चुम्बकीय नियम को जानता है, उसके लिए चमत्कार जैसा कुछ भी नहीं है। दोनों ने-अध्यात्म को विज्ञान ने-नियमों को खोजा। इसीलिए एक वैज्ञानिक व्यक्ति आगे चलते-चलते आध्यात्मिक बन जाता है और एक आध्यात्मिक व्यक्ति अपनी यात्रा करते-करते वैज्ञानिक बन जाता है। यह नहीं हो सकता कि वैज्ञानिक आध्यात्मिक न हो और यह भी नहीं हो सकता कि आध्यात्मिक वैज्ञानिक न हो। यह इसलिए होता है। कि दोनों का मार्ग एक है, दिशा एक है, पद्धति एक है और निष्पत्ति एक है। इतना होने पर ये दोनों अलग कैसे रह सकते हैं? भिन्न-भिन्न दिशाओं से आने वाली ये दो धाराएं एक महानदी में मिलकर एक हो जाती है। वैसे ही विज्ञान की धारा, अध्यात्म की धारा तथा भिन्न-भिन्न लगने वाली और भी अनेक धाराएं जब सत्य के महासमुद्र में विलीन होती हैं, तब वे सब एक बन जाती हैं। उनका भेद समाप्त हो जाता है। नियमों को जानना बहुत आवश्यक है। नियमों को जाने बिना कोई व्यक्ति आध्यात्मिक नहीं बन सकता। नियमों को जाने बिना कोई व्यक्ति वैज्ञानिक नहीं बन सकता। अध्यात्म के अपने नियम हैं और विज्ञान के अपने नियम हैं। अध्यात्मिक व्यक्ति को विज्ञान पढ़ना बहुत जरूरी है और वैज्ञानिक को अध्यात्म पढ़ना बहुत जरूरी है। अच्छा यह होगा कि अध्यात्म के प्रकाश में विज्ञान को पढ़ा जाए और विज्ञान के प्रकाश में अध्यात्म को पढ़ा जाए, तब नियमों की पूरी श्रृंखला हमारे समाने आ सकती है। धर्म और विज्ञान की महानता आज लोग विज्ञान को केवल दो शताब्दी पुराना ही मान बैठे हैं। इस काल में जो अन्वेषण और प्राप्ति विज्ञान ने की है सिर्फ वही विज्ञान है, ऐसी लोगों ने धारणा बना ली है। लेकिन जो उपलब्धियां सामने हैं, वे विज्ञान नहीं है। वे तो उपलब्धियों मात्र हैं। यथार्थ भाव से देखना ही विज्ञान है। आत्मा से भिन्न कोई विज्ञान है ही नहीं। अणुबम विज्ञान की देन है। लेकिन वह अपने कुछ नहीं कर सकता Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003127
Book TitleJain Darshan aur Vigyan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMahendramuni, Jethalal S Zaveri
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year2008
Total Pages358
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari, Philosophy, & Science
File Size15 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy