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________________ ३७ दर्शन और विज्ञान है। अभौतिक वास्तविकता को भी वे स्वीकार करते हैं। इस प्रकार जैन दर्शन के साथ इनकी विचारधारा का काफी सामंजस्य प्रतीत होता है। मार्गेनौ की विचारधारा में ज्ञान-मैमासिक विश्लेषण के द्वारा ज्ञाता और ज्ञेय पदार्थ की वास्तविकता के विषय में चिन्तन किया गया है और वह विचारधारा समीक्षात्मक वास्तविकतावाद के निकट चली जाती है। समीक्षात्मक वास्तविकतावाद के अनुसार ज्ञान-प्रक्रिया में तीन तत्त्व होते १. ज्ञाता २. ज्ञेय ३. ज्ञात पदार्थ 'ज्ञाता' ज्ञान प्राप्त करने वाला है। जिस वस्तु का ज्ञान प्राप्त होता है, उसी को ज्ञेय पदार्थ' कहते हैं। मन या ज्ञाता की चेतना के समक्ष जो पदार्थ विद्यमान रहता है, उसी को ज्ञात पदार्थ' कहते है। उसे प्रदत्त (डटम) भी कहते है; क्योंकि ज्ञाता को यह प्राप्त होता है, वास्तविक वस्तु नहीं मिलती। यह सिद्धांत वास्तविक वस्तु और ज्ञात वस्तु; दोनों में द्वैत या भिन्नता मानता है, इसलिए इस ज्ञान-शास्त्रीय द्वैतवाद (एपिस्टेमोलोजिकल ड्यअलिज़म) कहते हैं। इस प्रकार इसके अनुसार ज्ञेय पदार्थ और ज्ञात पदार्थ में संख्यात्मक भिन्नता तो होती है; किन्तु इन प्रदत्तों के द्वारा यथार्थ वस्तुओं का प्रत्यक्ष ज्ञान होता है। क्योंकि हम प्रदत्तों को नहीं देखते, बल्कि चश्मे की तरह उनके माध्यम से वस्तुओं को देखते हैं। जैन दर्शन ज्ञेय पदार्थ को स्वतन्त्र वास्तविकता के रूप में स्वीकार करता है तथा ज्ञाता का भी स्वतन्त्र वास्तविक अस्तित्व मानता है। ज्ञात पदार्थ ज्ञेय पदार्थ से संख्यात्मक भिन्नता रखता है। ज्ञान प्रक्रिया में दो प्रकार के साधनों का उपयोग होता है-ऐन्द्रिय और अतीन्द्रिय। ऐन्द्रिय साधनों द्वारा ज्ञात पदार्थ ज्ञेय पदार्थ से न केवल संख्यात्मक भिन्नता रखता है बल्कि इनमें स्वरूपात्मक भिन्नता भी होनी संभव है। हां, यह ज्ञात पदार्थ ज्ञेय पदार्थ और ऐन्द्रिय उपकरणों के पारस्परिक सम्बन्धों के अनुरूप ही होता है। गणित की भाषा में इसे कहें तो-यदि अ ज्ञेय पदार्थ है और ब ऐन्द्रिय साधनों द्वारा ज्ञात पदार्थ है, तो ब=फ (अ, ऐन्द्रिय सम्बन्ध) होता है। इस १. दी नेचर ऑफ फिजिकल रियलिटी, पृ० ४५८ । २. देखें, दर्शनशास्त्र की रूपरेखा, पृ० ३४५ । ३. फ ( ) फलन (फंक्शन) का चिह्न है। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003127
Book TitleJain Darshan aur Vigyan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMahendramuni, Jethalal S Zaveri
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year2008
Total Pages358
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari, Philosophy, & Science
File Size15 MB
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