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जैन दर्शन और विज्ञान प्रकार हमारे ज्ञान में आने वाले विश्व और वास्तविक विश्व में यह द्वैत' हो जाता है। जहां अतीन्द्रिय साधनों के द्वारा ज्ञान प्राप्त होता है, वहां ज्ञात पदार्थ और ज्ञेय पदार्थ में संख्यात्मक द्वैत तो रहता है, किन्तु स्वरूपात्मक द्वैत नहीं रहता। अर्थात् यदि क अतीन्द्रिय साधनों के द्वारा ज्ञात पदार्थ है, तो
क = अ होता है।
इस विवेचन से यह स्पष्ट हो जाता है कि जैन दर्शन और समीक्षात्मक वास्तविकतावाद में बहुत कुछ सादृश्य है, किन्तु थोड़ा अन्तर भी है। समीक्षात्मक वास्तविकतावाद जहां प्रदत्त और यथार्थ वस्तु में स्वरूपात्मक भिन्नता को स्वीकार नहीं करता, वहां जैन दर्शन उसकी सम्भवता को स्वीकार करता है। दसूरी बात यह है कि 'प्रदत्तों' को जैन दर्शन में कोई स्वतंत्र वास्तविकता के रूप में स्वीकार नहीं किया गया हैं, किन्तु वह वस्तुत: ज्ञाता का ही एक अंग बन जाता है। हां, उसका स्वरूप ज्ञेय पदार्थ' पर आधारित अवश्य होता है। ऐसा मानने से जो दोष समीक्षात्मक वास्तविकतावाद में आते हैं, जैन दर्शन की विचारधारा उनसे मुक्त रह जाती है। हाइजनबर्ग का दर्शन और जैन दर्शन
वैज्ञानिकों में अनेक ऐसे हैं, जो अनेक तत्त्वात्मक वास्तविकतावाद को स्वीकार करते हैं। प्राचीन युग में न्यूटन ने स्पष्ट रूप से भूत और चेतन के स्वतंत्र अस्तित्व को स्वीकार किया था, आधुनिक युग में हाइजनबर्ग, व्हीट्टाकर आदि भी पदार्थ के वस्तु-सापेक्ष अस्तित्व को किस प्रकार स्वीकार करते हैं, इसकी चर्चा हम कर चुके हैं। हाइजनबर्ग का स्थान वर्तमान वैज्ञानिकों की प्रथम श्रेणी में है। उन्होंने अपने भौतिक विज्ञान और दर्शन नामक ग्रन्थ में आधुनिक विज्ञान के दर्शन की जो चर्चा की है, उसके आधार पर कहा जा सकता है कि उन्होंने भौतिक पदार्थों को वस्तु-सापेक्ष वास्तविकता के रूप में माना है साथ ही चेतन तत्त्व की वास्तविकता को भी वे स्वीकार करते हैं। उन्होंने माना है कि चेतन तत्त्व' को भौतिक शास्त्र, रसायन शास्त्र और विकासवाद के सिद्धान्तों पर नहीं समझाया जा सकता। हाइजनबर्ग यह भी मानते है कि वास्तविकता' को समझाने के लिए हमारी सामान्य धारणाओं की सूक्ष्म परिभाषाएं आवश्यक हैं। इनकी विचारधारा को हम आधुनिक प्रत्यक्षवाद के अन्तर्गत मान सकते हैं। उन्होंने स्वयं आधुनिक प्रत्यक्षवाद की चर्चा में यह कहा है कि 'पदार्थ', 'अनुभूति', 'अस्तित्व' आदि की समीक्षात्मक परिभाषाएं आवश्यक हैं। १. विवरण के लिए देखें, दर्शनशास्त्र की रूपरेखा, पृ० ३४७-३४८ २. फिजिक्स एण्ड फिलोसोफी, पृ० ९५ । ३. वही, पृ० ८४ ४. वही, पृ० ७८ ।
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