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जैन दर्शन और विज्ञान वह न्यायसंगत नहीं है। केवल भूत को चरम वास्तविकता मान लेने से विश्व क्या है' की प्रहेलिका सुलझ नहीं सकती। बट्टैण्ड रसल का दर्शन और जैन दर्शन
विश्व की चरम वास्तविकता एक नहीं, अपितु अनेक हैं; यह अनेक तत्त्वात्मक वास्तविकतावाद है। दार्शनिक विचारधाराओं में यदि कोई विचार-धारा जैन दर्शन के अधिक निकट हो, तो वह अनेक तत्त्वात्मक वास्तविकतावाद की है। इस विचारधारा में भी तत्त्वों के स्वरूप, संख्या आदि को लेकर अनेक अभिप्राय प्रस्तुत हुए है। द्वैतवाद विश्व में दो तत्त्व की सत्ता का प्रतिपादन करता है। अनुभयवाद जड़ और चेतन के अतिरिक्त तीसरे ही प्रकार के तत्त्वों को विश्व की वास्तविकता मानता है।
आधुनिक दार्शनिकों में बट्टैण्ड रसल की विचारधारा में 'अनेक तत्त्वात्मक वास्तविकवाद' का प्रतिपादन हुआ है। वे भौतिक पदार्थों के अस्तित्व को अनुभूति पर आधारित नहीं मानते। रसल ने सभी प्रकार की आदर्शवादी और ज्ञाता-सापेक्षवादी विचारधाराओं का तार्किक ढंग से खण्डन किया है। बर्कले के अनुभववाद और प्लुतो के 'प्रत्ययों के सिद्धांत' की भी उन्होंने तर्कपूर्ण रीति से धज्जियां उड़ाई हैं। ज्ञान-मैमासिक विश्लेषण की दृष्टि से रसल ने एक नये प्रकार के वास्तविकतावाद को जन्म दिया है। इसमें स्पष्ट रूप से माना गया है कि ज्ञेय पदार्थों का अस्तित्व ज्ञाता से सर्वथा स्वतंत्र है। जैन-दर्शन भी इस सिद्धांत को स्वीकार करता है। इस प्रकार पदार्थों के वस्तु-सापेक्ष अस्तित्व को दोनों दर्शनों में स्वीकार किया गया
बर्टेण्ड रसल जहां पदार्थों के वास्तविक अस्तित्व को स्वीकार करते हैं, वहां चैतन्य के अस्तित्व को भी स्वीकार करते है; अत: भौतिकवाद के भी वे विरोधी हैं। यहां तक तो उनका जैन दर्शन के साथ सामंजस्य रहता है। किन्तु इससे आगे वे मानते हैं कि विश्व की वास्तविकता 'अनुभय' अर्थात् जड़ और चेतन से परे तीसरे प्रकार के तत्त्व हैं, जिनको वे घटनाएं (ईवण्ट्स) कहते है। इस प्रकार उनके अनुसार विश्व के सभी पदार्थ घटनाओं के समूह हैं। घटनाएं अपने आप में जड़ और चेतन दोनों से भिन्न हैं और आकाश काल के सीमित प्रदेश में स्थित है। इन घटनाओं को वे स्वभावत: गत्यात्मक (डाइनेमिक) मानते हैं तथा एक-दूसरे से संबंधित भी। 'घटना' के अर्थ को स्पष्ट करने के लिए उन्होंने लिखा है-“जब मैं 'घटना' के विषय १. एन आउटलाइन ऑफ फिलोसोफी, पृ० २८७ ।
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