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दर्शन और विज्ञान (ई. पू. ६२४-ई. पू. ५५०) से प्रारम्भ होकर आधुनिक युग में कार्ल मार्क्स की विचारधारा तक विविध रूप में दिखाई देता है। यहां पर हम इसके ऐतिहासिक विवेचन
और सूक्ष्म भेदोपभेद में न जाकर केवल इसके स्थूल रूप की ही समीक्षा करेंगे। जैन दर्शन और भौतिकवाद में भौतिक पदार्थों की वस्तु-सापेक्षता के विषय में जो सादृश्य है, वह तो स्पष्ट ही है। भौतिकवाद के अनुसार भूत तत्त्व की परिभाषा है, “जो कुछ हम अपनी इन्द्रियों से देखते-समझते (इन्द्रिय-गोचर) हैं, जो कुछ इन्द्रिय-गोचर वस्तुओं का मूल स्वरूप है, जो देश (लम्बाई, चौड़ाई, मोटाई) में फैला हुआ है, जो कम या अधिक मात्रा में दबाव की रोकथाम करता है, जिनमें इन्द्रियों के जानने लायक गति पाई जाती है, वह 'भूत' है।" लेनिन के शब्दों में 'भूत' की दार्शनिक परिभाषा है-“भूत दार्शनिक परिभाषा में उस साकार वास्तविकता को कहते हैं, जिसका ज्ञान मनुष्य को उसकी इन्द्रियों द्वारा मिलता है। वह ऐसी वास्तविकता है, जिसकी नकल की जा सकती है, जिसका फोटो खींचा जा सकता है। जो हमारी संवेदनाओं (विषय-इन्द्रिय-मस्तिष्क सम्पर्क) द्वारा मस्तिष्क में प्रतिबिम्बित की जा सकती है, किन्तु उसकी सत्ता इन (संवेदनाओं) पर निर्भर नहीं है।''२ दूसरी ओर जैन दर्शन में पुद्गल की परिभाषा करते हुए कहा गया है-“स्पर्श, रस, गन्ध, वर्ण; इन गुणों से युक्त द्रव्य पुद्गल (अर्थात् भूत) है।''३ इन दोनों परिभाषाओं के सूक्ष्म अन्तरों को छोड़ दिया जाए, तो कहा जा सकता है कि दोनों ही परिभाषाओं का तात्पर्य एक ही है। यद्यपि जैन दर्शन पुद्गल की चरम इकाई को इन्द्रिय-गोचर नहीं मानता, फिर भी पुद्गल के मूर्तत्त्व गुण को तो स्वीकार करता ही है। इस प्रकार जहां तक भौतिक पदार्थों की वास्तविकता का प्रश्न है, जैन दर्शन और भौतिकवाद दोनों ही इनकी वस्तु-सापेक्ष सत्ता को स्वीकार करते है।
जैन दर्शन और भौतिकवाद में जो सबसे बड़ा अन्तर है, वह है-मूल वास्तविकताओं की संख्या के विषय में। भौतिकवादी जहां केवल भूत तत्त्व को ही एक मात्र वास्तविकता के रूप में मानते हैं, वहां जैन दर्शन पुद्गल के अतिरिक्त जीव आदि अन्य अस्तिकायों को भी वास्तविकता के रूप में स्वीकार करता है। यद्यपि प्राचीन 'दार्शनिक भौतिकवाद' और आधुनिक वैज्ञानिकों के भौतिकवाद में यह अन्तर तो है कि जहां प्राचीन भौतिकवादी चेतन अथवा आत्मा को सर्वथा ही जड़ (भूत) तत्त्व से अभिन्न मानते थे, वहां आधुनिक भौतिकवादी वैज्ञानिक मार्क्स के 'द्वन्द्वात्मक
१. दी मेटेरियलिजम एण्ड एम्पीरियो क्रिटिसिजम, पृ० १०२ । २. वैज्ञानिक भौतिकवाद, ले० राहुल सांकृत्यायन, पृ० १११ । ३. स्पर्शरसगन्धवर्णवान् पुद्गलः।।
-श्री जैन सिद्धांत दीपिका, १-११ । ४. पाश्चात्य दार्शनिकों में डेमोक्रिटस की यह मान्यता थी कि भौतिक परमाणुओं से ही 'आत्मा' __ का निर्माण होता है। आत्मा की उत्पत्ति अत्यन्त ही चिकने, गतिशील और गोल परमाणुओं से होती है। For Private & Personal Use Only
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