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________________ २८ जैन दर्शन और विज्ञान माख का यह सिद्धांत था कि संवेदन-तत्त्व के अतिरिक्त कुछ भी वास्तविकता नहीं है। माख के अणु के अस्तित्व-सम्बन्धी ये विचार बताते हैं कि वे पदार्थ की वास्तविकता का निषेध करते हैं। इन सभी वैज्ञानिकों का झुकाव ज्ञाता-सापेक्षवाद की ओर दिखाई देता हैं जो वैज्ञानिक भौतिकवाद की विचारधारा को स्वीकार नहीं करते हैं, अधिकांश रूप में वे इस प्रकार के आदर्शवाद को अपनाते देखे जाते हैं। वे आत्मा अथवा ऐसी ही कोई अभौतिक तत्त्व की, जो चैतन्यमय होने से भौतिक पदार्थों से उल्टे प्रकार के होते हैं, 'वास्तविकता' सिद्ध करने के लिए भौतिक पदार्थ को अवास्तविक बतोते हैं। जैन दर्शन की विचारधारा 'आत्मा' के वास्तविकता अस्तित्व को स्वीकार करती हुई भी भौतिक पदार्थ को अवास्तविक नहीं मानती। इस प्रकार उक्त वैज्ञानिकों की विचारधरा और जैन दर्शन के तात्त्विक सिद्धांत में आत्मा के वास्तविक अस्तित्व के विषय में जहां पूर्ण सादृश्य हैं, वहां भौतिक पदार्थ की वास्तविकता के विषय में मतभेद रह जाता है। (ख) वास्तविकतावाद और जैन दर्शन 'विश्व क्या है?' इस प्रश्न का उत्तर वास्तविकतावादी दार्शनिक और वैज्ञानिक किस रूप में देते हैं, इसका अवलोकन हम कर चुके हैं। यहां पर उनमें से कुछ प्रमुख दार्शनिकों की और वैज्ञानिकों की विचारधारा की जैन दर्शन के आलोक में एक तुलनात्मक समीक्षा करने का हम प्रयत्न करेंगे। वास्तविकतादी विचारधारा को हम मुख्य रूप से दो भेदों में विभाजित कर सकते हैं। १. भौतिकवाद- इस विचारधारा के अनुसार विश्व के सभी पदार्थों का अस्तित्व स्व-आधारित है। इसमें केवल एक ही वास्तविकता है, एक ही तत्त्व है, जिसे 'भूत' (जड़) कहा जाता है। इसके अतिरिक्त किसी भी अभौतिक तत्त्व के वास्तविकता अस्तित्व को यह विचारधारा स्वीकार नहीं करती। 'विश्व क्या है?' इस प्रश्न का उत्तर भौतिकवाद के अनुसार है-विश्व भूतमय है।। २. अनेक तत्त्वात्मक वास्तविकतावाद-इस विचारधारा के अनुसार विश्व में दो अथवा दो से अधिक तत्त्वों का वास्तविक अस्तित्व है। भौतिक पदार्थों के वस्तु-सापेक्ष अस्तित्व को तो यह विचारधारा स्वीकार करती है, किन्तु इसके साथ अभौतिक तत्त्वों को भी वास्तविकता के रूप में स्वीकार करती है। इस अभौतिक वास्तविकता की संख्या और स्वरूप के विषय में मतभेद होने के फलस्वरूप इस विचारधारा के अनेक उपभेद बन जाते हैं। भौतिकवाद और जैन दर्शन पश्चिम दर्शन जगत में भौतिकवाद के यूनानी विचारक थेल्स (Thales) १. दी नेचर ऑफ मेटाफिजिक्स, पृ० ६७ । Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003127
Book TitleJain Darshan aur Vigyan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMahendramuni, Jethalal S Zaveri
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year2008
Total Pages358
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari, Philosophy, & Science
File Size15 MB
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