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जैन दर्शन और विज्ञान ६. भौतिक पदार्थ के चरम वास्तविक स्वरूप को अब तक भौतिक विज्ञान नहीं जान सका है। इस प्रकार एडिंग्टन का दर्शन वर्तमान भौतिक विज्ञान के अपूर्ण और सम्भवत: गलत ज्ञान पर आधारित है। जैन दार्शनिकों ने पुद्गल के चरम स्वरूप को अतीन्द्रिय ज्ञान द्वारा जान कर अपने दर्शन का प्रतिपादन किया है। जैन दर्शन के अनुसार तो पुद्गल (भौतिक तत्त्व) का चरम स्वरूप ऐन्द्रिय ज्ञान का विषय नहीं बना सकता' और 'इसलिए 'भौतिक विज्ञान' के आधार पर इसका वास्तविक ज्ञान होना संभव नहीं है। इस दृष्टि से एडिंग्टन का यह अभिमत कि 'भौतिक विज्ञान' के द्वारा सापेक्ष वास्तविकता को जानना अशक्य है, भी सही तथ्य का ही उच्चारण है, ऐसा कहा जा सकता है ।
जीन्स का दर्शन और जैन दर्शन
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आदर्शवादी वैज्ञानिकों में एडिंग्टन के बाद प्रधान स्थान सर जेम्स जीन्स का है। जीन्स ने अपनी विचारधारा का प्रतिपादन मुख्यतया अपनी पुस्तक 'दी मिस्टीस युनिवर्स' में किया है। जहां तक भौतिक विज्ञान के विचारक और प्रायोगिक क्षेत्रों का प्रश्न है, जीन्स का स्थान प्रथम श्रेणी के वैज्ञानिकों में रहा है । उष्णता के सम्बन्ध में जीन्स ने कुछ एक मौलिक सिद्धांतों का स्थापन भी किया है । किन्तु जहां दर्शन का प्रश्न है, वहां पर तो जीन्स का दर्शन भी एडिंग्टन के दर्शन की भांति अस्पष्ट ही रहा है। उनकी कृतियों में स्थान-स्थान पर परस्पर विरोधी कथन और उलझनपूर्ण चिन्तन नजर आता है। प्रो. स्टेबिंग ने जीन्स और एडिंग्टन; दोनों की कटु आलोचना की है।
जीन्स के विचारों की अस्पष्टता का एक उदाहरण प्रो. स्टेबिंग के शब्दों में इस प्रकार मिलता है- 'विश्व शुद्ध गणितज्ञ के द्वारा निर्मित हुआ है' और 'विश्व शुद्ध गणितज्ञ के विचारों से बना हुआ है ।'; इन दो कथनों को जीन्स समानार्थक मानते है या नहीं इसका निर्णय करना सरल नहीं है । ये दो कथन निश्चय ही भिन्न-भिन्न अर्थ को सूचित करते हैं, किन्तु जीन्स को इनकी भिन्नार्थकता का ज्ञान नहीं है, ऐसा लगता है । प्रोफेसर स्टेबिंग ने इस प्रकार के अनेक उदाहरण अपनी कृति में दिये हैं, १. भगवती सूत्र, १८-८-६४१ ।
२. सुविख्यात विज्ञानविद् सर डब्ल्यू० सी० डैम्पियर ने विज्ञान के इतिहास पर लिखी अपनी पुस्तक में भी वैज्ञानिक पद्धति की इस सीमितता का स्पष्ट उल्लेख करते हुए लिखा है- 'जब हम किसी परमाणु का निरीक्षण करते हैं तो हर हालत में हम कोई न कोई बाहरी उपकरण प्रयुक्त करते हैं। यह उपकरण किसी-न-किसी रूप में परमाणु को प्रभावित करता है और उसमें परिवर्तन ला देता है तथा हम यही परिवर्तित परमाणु देख पाते हैं, वास्तविक परमाणु नहीं ।' - विज्ञान का संक्षिप्त इतिहास ( हिन्दी अनुवाद), पृ० २९९ ।
३. फिलोसोफी एण्ड दी फिजिसिस्ट्स, पृ० २५ ।
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