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जैन दर्शन और विज्ञान दूसरी ओर सक्रियता या चंचल अवस्था में भी परमाणु सीमित समय रह सकता है। एक अवधि के बाद वह परमाणु निश्चित ही स्थिरता को प्राप्त होगा। सक्रियता की अधिकतम कालावधि आवलिका का असंख्यातवां हिस्सा या असंख्यातांश है। सक्रियता और अक्रियता का न्यूनतम कालमान एक समय है। इस प्रकार परमाणु की सक्रियता सतत न होकर खण्डित रूप में होती है। इस अवधारणा की तुलना आधुनिक विज्ञान के क्वांटम सिद्धांत के साथ की जा सकती है। परमाणु क्वचित् स्थिर, क्वचित् चंचल-इस प्रकार बारी-बारी से होता रहता है।
भगवती सूत्र में परमाणु की गति को इस प्रकार वर्णित किया गया है-'परमाणु कभी एजन करता है, कभी वेजन करता है, कभी चलायमान होता है, कभी स्पन्दन करता है, कभी क्षुब्ध होता है, कभी गति में प्रेरित होता है, आदि।' इस शब्दावली से स्पष्ट होता है कि परमाणु विभिन्न प्रकार से गति करता है। यह गति सरल कम्पन, सरल स्थानांतरण, जटिल कम्पन, जटिल स्थानांतरण, दोलन, प्रसारण, ग्रहण, घूर्णन, घर्षण, फिरकन (spin) या तरंग-प्रसार आदि रूप में हो सकती है। 'आदि' शब्द का प्रयोग यह सूचना करता है कि अन्य भी अनेक प्रकार की गति के रूप की संभावना है। परमाणु की गति के नियम
परमाणु की गति कुछ सन्दर्भो में नियमों से नियत है, तो कुछ हद तक अनियतता के सिद्धांत का अनुसरण करती है। जैसे
१. यदि बाहर का प्रभाव न हो, तो परमाणु की गति सदा अनुश्रेणी (अर्थात् सीधी रेखा में) होगी।
२. यदि बाह्य प्रभाव हो, तो परमाणु की दिशा और वेग में अन्तर आ सकता
३. जीव का परमाणु की गति पर कोई प्रभाव नहीं होता।
४. परमाणु का न्यूनतम वेग आकाश के एक प्रदेश से दूसरे पर एक समय में होगा और अधिकतम वेग लोक के एक अन्त से दूसरे अन्त तक एक समय में होगा।
५. अक्रिय अवस्था का अधिकतम काल 'असंख्यात समय' होगा तथा सक्रिय अवस्था का अधिकतम काल 'आवलिका के असंख्यातवें अंश' जितना होगा।
दूसरी ओर परमाणु की अनियतता से सम्बद्ध कुछ नियम हैं
१. स्थित परमाणु कब चलायमान होगा, यह अनियत है। इसका तात्पर्य हुआ कि परमाणु द्वारा कितने काल के पश्चात् ऊर्जा का प्रसारण होगा यह नियत नहीं है।
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