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________________ जैन दर्शन और विज्ञान में परमाणु ३२५ है, परिणमन केवल स्पर्श आदि गुणों की मात्रा में होता है, गुण का प्रकारान्तरण नहीं होता। जैसे-काला वर्ण अन्य वर्ण में नहीं बदलता, पर एक गुण (unit) काला दो गुण काला यावत् अनन्त गुण काला हो सकता है। स्कन्ध के साथ प्रतिक्रिया होने के पश्चात् उसके गुणों का प्रकारांतरण भी संभव हो जाता है। अर्थात् उसका वर्ण अन्य किसी वर्ण में बदल सकता है। ११. शाश्वतता की दृष्टि से-परमाणु अविनाशी है, शाश्वत है। स्वतन्त्र अवस्था में या स्कन्ध में या स्कन्ध के साथ वह सदा अपने अस्तित्व को बनाए रखता है। इसीलिए विश्व (लोक ) में परमाणु जितने हैं उतने के उतने सदा बने रहते हैं। न नए परमाणु का जन्म होता है, न विद्यमान परमाणु का विनाश। १२. अगुरुलघुत्व-परमाणु अगुरुलघु है। गुरुत्व या लघुत्व स्पर्श के प्रकार हैं, जो केवल स्थूल पुद्गलों में होते हैं। वैज्ञानिक शब्दावली में कहें तो परमाणु संहति-शून्य (massless) है। १३. परिणामीनित्य-परमाणु द्रव्य की दृष्टि से नित्य है, पर्याय की दृष्टि से परिणामी है। इसलिए उसे परिणामीनित्य या नित्यानित्य कहा गया है। १४. अग्राह्य-परमाणु जीव द्वारा अग्राह्य है। सूक्ष्म होने के कारण जीव अकेले (स्वतंत्र) परमाणु को ग्रहण नहीं कर सकता। जीव केवल अनन्त-प्रदेशी स्कन्ध को ही काम में ले सकता है। १५. एकत्व-अनेकत्व-मूलभूत द्रव्य के रूप में परमाणु एक है-अकेला है। वह एक स्वतन्त्र इकाई है। वह एक अविभाज्य सत्ता है; पर वह अनेक गुण एवं पर्यायों को धारण करने वाला है, इसलिए अनेकत्व का आधार है। क्षेत्र की दृष्टि से वह केवल एक प्रदेशावगाही है। १६. गति और क्रिया-परमाणु में स्वभावत: गतिशीलता और सक्रियता की प्रवृत्ति पाई जाती है। इसका अर्थ यह नहीं है कि सभी परमाणु सदा और सर्वत्र सभी स्थितियों में सक्रिय या गतिमान बने रहते हैं। पर उनका झुकाव इस ओर रहता है। किसी भी परमाणु के चंचल बनने के विषय में एक प्रकार की अनियतता (uncertainty) होती है। वे कब चंचल बनेंगे-इस विषय में पूर्ण नियत कथन नहीं किया जा सकता। एक परमाणु सीमित समय तक ही एक आकाश-प्रदेश पर स्थिरावस्था में टिक सकता है। अक्रियता का यह काल 'असंख्यात समय' से अधिक नहीं होता। उसके पश्चात् वह निश्चित ही गति करेगा। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003127
Book TitleJain Darshan aur Vigyan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMahendramuni, Jethalal S Zaveri
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year2008
Total Pages358
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari, Philosophy, & Science
File Size15 MB
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