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________________ जैन दर्शन और विज्ञान में परमाणु ३२७ यह काल एक समय से लेकर असंख्यात समय तक हो सकता है। असंख्यात समय के पश्चात् तो वह निश्चित ही सक्रिय होगा ही। २. सक्रिय परमाण कितने काल तक सक्रिय रहेगा यह अनियत है। यह काल एक समय से लेकर 'आवलिका के असंख्यातवें अंश' जितना हो सकता है। पर इस अधिकतम कालावधि के पश्चात् तो वह निश्चित ही स्थिर होगा ही। ३. परमाणु अपनी गति किस दिशा में प्रारंभ करेगा, यह अनियत है। वह किसी भी दिशा में गति कर सकता है। ४. अक्रिय (स्थिर) दशा वाला परमाणु किस प्रकार की क्रिया प्रारम्भ करेगा, यह अनियत है। वह केवल एजन (कम्पन) कर सकता है या घूर्णन (rotation) या स्थानांतरण या युगपत् एकाधिक क्रियाएं भी कर सकता है। ५. सक्रिय होने पर, उसकी गति का वेग कितना होगा, यह भी अनियत है। वह न्यूनतम, मध्यम या अधिकतम वेग से गति करेगा-यह अनियत है। परमाणु की प्रतिघाती और अप्रतिघाती गति १. परमाणु की गति सामान्यत: अप्रतिघाती होती है अर्थात् विशेष अपवादों को छोड़कर परमाणु की गति का अवरोध न अन्य पुद्गल द्वारा हो सकता है और न जीव द्वारा। मार्ग में आने वाले किसी भी पदार्थ के भीतर से वह आर-पार निकल सकता है। २. जिस आकाश-प्रदेश पर अन्य पद्गल है, वहां पर परमाणु की अवस्थिति अप्रतिघाती रूप से हो सकती है। अर्थात् परमाणु वहां अपने स्वतंत्र अस्तित्व को बनाए रख सकता है। ३. परमाणु को अपनी गति को प्रारम्भ करने में या चालू रखने में उस आकाश-प्रदेश पर स्थित अन्य पुद्गलों द्वारा कोई प्रतिघात नहीं होता। जिन अपवादों के कारण प्रतिघात हो सकता है, वे हैं १. उपकाराभाव प्रतिघात-लोक की सीमा से परे गति-स्थित माध्यम के अभाव से परमाणु की गति प्रतिहत होती है। २. बन्धन-परिणाम-प्रतिघात-जब परमाणु किसी पुद्गल स्कंध के साथ बंधा हुआ है, तब उसकी गति स्वतन्त्र रूप से नहीं होती। ३. अति-वेग-प्रतिघात-अति तीव्र वेग वाले दो परमाणुओं के संघट्टन या टक्कर होने पर दोनों की गति में प्रतिपात पैदा हो जाता है। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003127
Book TitleJain Darshan aur Vigyan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMahendramuni, Jethalal S Zaveri
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year2008
Total Pages358
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari, Philosophy, & Science
File Size15 MB
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