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________________ ३१० जैन दर्शन और विज्ञान जैन दर्शन को इस १०३ की संख्या से भी कोई आपत्ति नहीं । ये १०३ तत्त्व केवल पुद्गल द्रव्य की ही पर्याय हैं। __ अणुबम-पहले वैज्ञानिकों की मान्यता थी कि उनका तथाकथित परमाणु टूटता नहीं, विच्छिन्न नहीं होता; लेकिन धीरे-धीरे उनकी यह मान्यता खण्डित होती गयी। धीरे-धीरे यह भी अन्वेषण हुआ कि परमाणुओं के बीजाणुओं की इकाई में अपार शक्ति भरी पड़ी हैं। उन्होंने यह अन्वेषण भी किया कि यूरेनियम नामक तत्त्व के परमाणुओं का विकिरण हो सकता है। इन्हीं सब अन्वेषणों के आधार पर अणुबम को जन्म मिला। यूरेनियम तत्त्व, जिसके परमाणुओं के विकिरण से अणु-विस्फोट होता है, पुद्गल-द्रव्य की पर्याय है; अत: यह सब पुद्गल द्रव्य का ही चमत्कार है। उद्जन बम-उद्जन बम का सिद्धांत अणुबम के सिद्धांत से ठीक विपरीत है। अणुबम अणुओं के विभाजन (fission) का परिणाम है जबकि उद्जन बम उनके संयोग (fusion) का। यह भी स्पष्टत: पुद्गल की ही पर्याय है। रेडियो/टेलीग्राम आदि-रेडियो, टेलीग्राम, ट्रांजिस्टर, टेलीफोन, टेलीप्रिंटर, बेतार-का-तार, ग्रामोफोन और टेप-रिकार्डर आदि अनेक यन्त्र आज विज्ञान के चमत्कार माने जाते हैं; पर इन सबके मूलभूत सिद्धांत पर दृष्टिपात करने से हम इसी निष्कर्ष पर आते हैं कि यह सब शब्द की अद्भुत शक्ति और तीव्रगति का ही परिणाम है और शब्द पुद्गल की ही पर्याय है। सचमुच पुद्गल के खेल अद्भुत और अनन्त हैं! टेलीविजन-जैसे रेडियो यन्त्र-गृहीत शब्दों को विद्युत्प्रवाह से आगे बढ़ा कर सहस्रों मील दूर ज्यों-का त्यों प्रकट करता है, वैसे ही टेलीविजन भी प्रसारणशील प्रतिच्छाया को सहस्रों मील दूर ज्यों-का-त्यों व्यक्त करता है। जैन शास्त्रों में बताया गया है कि विश्व के प्रत्येक मूर्त पदार्थ से प्रतिक्षण तदाकार प्रतिच्छाया निकलती रहती है और पदार्थ के चारों ओर आगे बढ़ कर विश्व भर में फैल जाती है। जहां उसे प्रभावित करने वाले पदार्थों-दर्पण, जल आदि का योग होता है, वहां वह प्रभावित भी होती है। टेलीविजन का आविष्कार इसी सिद्धांत का उदाहरण है; अत: टेलीविजन का अन्तर्भाव पुद्गल की छाया नामक पर्याय में किया जाना चाहिए। एक्स-रेज-एक्स-रेज भी विज्ञान-जगत् का एक महत्त्वपूर्ण एवं चमत्कारपूर्ण आविष्कार है। प्रकाश-किरणों की अबाध गति एवं अत्यन्त सूक्ष्मता ही इस आविष्कार का मूल है; अत: एक्स-रेज को पुद्गल की प्रकाश नामक पर्याय के अन्तर्गत रखना Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003127
Book TitleJain Darshan aur Vigyan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMahendramuni, Jethalal S Zaveri
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year2008
Total Pages358
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari, Philosophy, & Science
File Size15 MB
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