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________________ ३०८ जैन दर्शन और विज्ञान परमाणु में धनाणु और ऋणाणु निरन्तर गतिशील रहते हैं और इसी तरह अणु में स्वयं परमाणु और अणु-गुच्छकों में अणु निरन्तर गतिशील रहते हैं। यही आंतरिक गति जब बहुत बढ़ जाती है और सूक्ष्म कण परस्पर टकराते हुए इधर-उधर दौड़ने लगते हैं तब वे ताप के रूप में दिखने लगते हैं। जैन सूत्रकारों ने आतप, उद्योत और प्रभा के रूप में प्रकाश के तीन प्रकार बताए हैं। आतप-सूर्य, अग्नि आदि का उष्ण प्रकाश। उसमें ऊर्जा का अधिकांश ताप-किरणों (heat rays) के रूप में प्रगट होता है। उद्योत-चन्द्रमा, जुग्नु आदि का शीतल प्रकाश। उसमें ऊर्जा का अधिकांश प्रकाश-किरणों (lightrays) के रूप में प्रगट होता है, ताप का पूर्ण अभाव या अल्प मात्रा होती है। प्रभा-रत्न आदि प्रकाश देने वाले पदार्थों से निकलनेवाले प्रकाश को प्रभा कहते हैं। तम (अन्धकार)-जो देखने में बाधक हो और प्रकाश का विरोधी हो वह अन्धकार है। कुछ जैनेतर दार्शनिकों ने अन्धकार को कोई वस्तु न मानकर केवल प्रकाश का अभाव माना है पर यह उचित नहीं। यदि ऐसा मान लिया जाए तो यह भी कहा जा सकेगा कि प्रकाश भी कोई वस्तु नहीं है, वह तो केवल तम का अभाव है। विज्ञान भी अन्धकार को प्रकाश का अभावरूप न मानकर पृथक् वस्तु मानता है। विज्ञान के अनुसार अन्धकार में भी उपस्तु किरणों (इंफ्रारेड हीट रेज) का सद्भाव है जिनसे उल्लू और बिल्ली की आंखें तथा कुछ विशिष्ट अचित्रीय पट (फोटोग्राफिक प्लेट्स) प्रभावित होते हैं। इससे सिद्ध होता है कि अन्धकार का अस्तित्व दृश्य प्रकाश (विजिबिल लाइट) से पृथक् होता है। छाया-प्रकाश पर आवरण पड़ने पर छाया उत्पन्न होती है। प्रकाश-पथ में अपारदर्शक वस्तुओं (ओपेक बॉडीज) का आ जाना आवरण कहलाता है। छाया को अन्धकार के अन्तर्गत रखा जा सकता है और इस प्रकार वह भी प्रकाश का अभाव रूप नहीं अपितु पुद्गल की पर्याय सिद्ध होती है। विज्ञान की दृष्टि में अणुवीक्षों (लेंसों) और दर्पणों के द्वारा प्रतिबिम्ब दो प्रकार के होते हैं, वास्तविक और अवास्तविक । इनके निर्माण की प्रक्रिया से स्पष्ट है कि ये ऊर्जा/प्रकाश के ही रूपान्तर हैं। ऊर्जा ही छाया (शेडो) और वास्तविक Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003127
Book TitleJain Darshan aur Vigyan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMahendramuni, Jethalal S Zaveri
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year2008
Total Pages358
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari, Philosophy, & Science
File Size15 MB
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