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जैन दर्शन और विज्ञान में पुद्गल आर-पार होने की शक्ति रखती हैं, और इन्द्रियों द्वारा किसी प्रकार भी इनका ग्रहण नहीं किया जा सकता; परन्तु आगम के अनुसार कार्मण वर्गणाएं इस कोटि में आती हैं। कार्मण वर्गणा एक प्रकार का सूक्ष्म पुद्गल स्कन्ध है, जो इन्द्रियों द्वारा प्रत्यक्ष नहीं किया जा सकता। स्वयं परमाणु सूक्ष्म-सूक्ष्म' पुद्गल है, जिससे सूक्ष्म अन्य कोई पुद्गल संभव नहीं है। (६) संस्थान (आकार)
संस्थान का अर्थ है आकार-रचना-विशेष। संस्थान भी पुद्गल का एक महत्त्वपूर्ण पर्याय है जिसके कारण त्रि-आयामात्मक आकाश में पुद्गल अवगाहन कर सकता है। संस्थान अनन्त प्रकार के हो सकते हैं। मोटे तौर पर उसे दो प्रकार में बांटा जा सकता है-इत्थं संस्थान, अनित्थं संस्थान । जिसके विषय में यह संस्थान इस प्रकार का है' ऐसा निर्देश किया जा सके वह 'इत्थं' लक्षण संस्थान है। उसके मुख्य पांच प्रकार हैं-१. वृत्त-गोलाकार २. त्रिकोणाकार ३. चतुष्कोण ४. आयत ५. परिमण्डल-वलयाकार ।
मेघ आदि के आकार जो कि अनेक प्रकार के हैं और जिनके विषय में यह इस प्रकार का है।' ऐसा नहीं कहा जा सकता, वह अनित्थं लक्षण संस्थान है। (७) प्रकाश और (८) अंधकार
प्रकाश और अन्धकार-दोनों ही पुद्गल के परिणमन हैं। प्रकाश पुद्गल की पर्याय है जिसके निमित्त से प्राणी देख सकते हैं। अंधकार अदृश्यता का कारण है और यह भी पुद्गल की ही पर्याय है। जैन दर्शन ने अंधकार को प्रकाश का केवल अभाव नहीं माना है।
प्रकाश का वैज्ञानिक विवेचन इस प्रकार है-वह चाहे सूर्य का हो, चाहे दीपक का, निरन्तर गतिशील है। वैज्ञानिकों ने लोक (ब्रह्माण्ड) में घूमने वाले आकाशीय पिण्डों की गति, दूरी आदि को मापने के लिए प्रकाश-किरण को ही अपना माप-दण्ड मान रखा है; क्योंकि उसकी गति सदा समान है। प्रकाश में पहले भार नहीं माना गया था, लेकिन अब यह सिद्ध हो चुका है कि वह एक शक्ति का भेद होते हुए भी भारवान है। वैज्ञानिकों ने यह भी पता लगाया है कि प्रकाश विद्युत्-चुम्बकीय तत्त्व है। वह एक वर्गमील क्षेत्र पर प्रति मिनिट आधी छटाक मात्रा में सूर्य से गिरता है।
ताप-ताप को हम उष्णता कह कर समझ सकते हैं। इसे पुद्गल के उष्ण स्पर्श गुण का पर्याय कहा जाना चाहिए; तभी ताप का विवेचन पूर्णत: वैज्ञानिक दृष्टि से होगा।
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