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________________ ३०६ जैन दर्शन और विज्ञान इस प्रकार उत्कृष्ट स्थूल का नाम है 'स्थूल-स्थूल', मध्यम स्थूल का नाम 'स्थूल' और जघन्य स्थूल का नाम है 'स्थूल-सूक्ष्म' (पहले स्थूल, फिर सूक्ष्म)। इसी प्रकार उत्कृष्ट सूक्ष्म का नाम है 'सूक्ष्म-सूक्ष्म', मध्यम सूक्ष्म का नाम है 'सूक्ष्म' और जघन्य सूक्ष्म का नाम है 'सूक्ष्म-स्थूल' (पहले सूक्ष्म, फिर स्थूल)। इन्हीं नामों को उत्कृष्ट स्थूलता से क्रमपूर्वक घटाते-घटाते उत्कृष्ट सूक्ष्मता-पर्यन्त यदि गिना जाए तो यों होगा-उत्कृष्ट स्थूल, मध्यम स्थूल, जघन्य स्थूल, जघन्य सूक्ष्म, मध्यम सूक्ष्म, उत्कृष्ट सूक्ष्म, या स्थूल-स्थूल, स्थूल, स्थूल-सूक्ष्म, सूक्ष्म-स्थूल, सूक्ष्म, सूक्ष्म-सूक्ष्म। वह पदार्थ जो किसी दूसरे में न तो समा सकता है, न किसी दूसरे में-से आर-पार हो सकता है, न स्वयं अपनी स्थिति तथा शक्ल बदल सकता है, जहां रख दिया जाए वहां ही ज्यों-का-त्यों पड़ा रहता है, वह स्थूल-स्थूल' पुद्गल स्कन्ध है। इस प्रकार पृथ्वी अर्थात् सभी छोटी या बड़ी ठोस वस्तुएं इस श्रेणी में आ जाती है। वे पदार्थ जो सबमें तो नहीं पर किसी पदार्थ में समा सके और किसी पदार्थ से आर-पार हो सके, स्वयं अपनी स्थिति तथा शक्ल भी बदल सके, जहां उसे रखा जाए वहां ही ज्यों-की-त्यों पड़ा रहता है, वह स्थूल-स्थूल' पुद्गल स्कन्ध है। इस प्रकार पृथ्वी अर्थात् सभी छोटी या बड़ी ठोस वस्तुएं इस श्रेणी में आ जाती हैं। वे पदार्थ जो सबमें तो नहीं पर किसी पदार्थ में समा सकें और किसी पदार्थ से आर-पार हो सकें, स्वयं अपनी स्थिति तथा शक्ल भी बदल सके जहां उसे रखा जाए वहां ही ज्यों-की-त्यों पड़ी न रह सके, जिन्हें टिकाने के लिए बहुत कुछ साधनों की सहायता लेनी पड़े, तथा जिन्हें तोड़ने पर पुन: स्वयं मिल जाएं, वे सब स्थूल' पुद्गल स्कन्ध हैं। इस प्रकार जल तथा वायु तत्त्व इस श्रेणी में आ जाते हैं। वह पदार्थ जो कुछ अन्य पदार्थों में से आर-पार हो सके, तथा जिसे किसी प्रकार भी पकड कर रखा न जा सके, वह स्थूल-सूक्ष्म पदार्थ है, जैसे प्रकाश; क्योंकि यह शीशे में से आर-पार हो जाता है। स्पर्शनेन्द्रिय का जो विषय गर्मी-सर्दी, रसनेन्द्रिय का जो विषय स्वाद, घ्राणेन्द्रिय का जो विषय गन्ध और कर्णेन्द्रिय का जो विषय शब्द, ये चारों प्रकार के पदार्थ 'सूक्ष्म-स्थूल' हैं। यहां तक के सर्व पदार्थ तथा विषय तो हम सबको प्रत्यक्ष है; परन्तु इससे आगे की श्रेणी में स्थूलता बिलकुल नहीं रह जाती और इसलिए वे हमारी इन्द्रियों के विषय भी नहीं बन सकते। वे हर पदार्थ में-से आर-पार भी हो जाते हैं। ऐसे पदार्थ 'सूक्ष्म' कहलाते हैं। आज के भौतिक विज्ञान द्वारा खोजने पर चुम्बक की किरणें तथा रेडियो की तरंगें इस श्रेणी में ग्रहण की जा सकती हैं; क्योंकि ये हर पदार्थ में-से Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003127
Book TitleJain Darshan aur Vigyan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMahendramuni, Jethalal S Zaveri
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year2008
Total Pages358
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari, Philosophy, & Science
File Size15 MB
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