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________________ जैन दर्शन और विज्ञान में पुद्गल ३०५ २. चूर्ण - गेहूं आदि का जो सत्तु (आदि) या कनक आदि बनती है I ३. खण्ड - घट आदि के जो कपाल (यानी ठीकरा या ठीकरी) और शर्करा (कंकरा ) आदि टूकड़े होते हैं । ४. चूर्णिका - उड़द या मुंग आदि का जो खण्ड (दाल के रूप में) किया जाता है । ५. प्रतर - मेघ के जो अलग-अलग पटल आदि होते हैं । ६. अनुचटण - तपाए हुए लोहे के गोले आदि को घन आदि से पीटने पर जो स्फुलिंगें निकलते हैं। (४) सौक्षम्य और ( ५ ) स्थौल्य सूक्ष्मता - सूक्ष्मता का अर्थ है छोटापन । यह दो प्रकार की है । अन्त्य सूक्ष्मता और आपेक्षिक सूक्ष्मता । अन्त्य सूक्ष्मता परमाणुओं में ही पायी जाती है और आपेक्षिक सूक्ष्मता दो छोटी-बड़ी वस्तुओं में तुलनात्मक दृष्टि से पायी जाती है । स्थूलता - स्थूलता का अर्थ बड़ापन है । वह भी दो प्रकार का है : अन्त्य स्थूलता जो महास्कन्ध में पायी जाती है और आपेक्षिक स्थूलता जो छोटी-बड़ी वस्तुओं में तुलनात्मक दृष्टि से पायी जाती है । दूसरी अपेक्षा स्थूलता और सूक्ष्मता की परिभाषा इस प्रकार भी की जा सकती है जो किसी दूसरे पदार्थ को न रोक सके और न ही स्वयं किसी से रुक सके, अथवा एक-दूसरे में समा कर रह सके या एक दूसरे में से पार हो जाए उसे सूक्ष्म कहते हैं; तथा जो पदार्थ दूसरे को रोके अथवा दूसरे से रुक जाए, एक-दूसरे में न समा सके न पार हो सके वह स्थूल कहलाता है 1 कोई पदार्थ पूर्णत: सूक्ष्म है, कोई कम सूक्ष्म है, कोई पूर्णत: स्थूल है, कोई स्थूल है। जो किसी से भी किसी प्रकार न रुके और प्रत्येक पदार्थ में समा कर रह सके वह पूर्ण सूक्ष्म है। जो हर पदार्थ से रुक जाए तथा किसी में भी समा कर रह न सके और किसी में से भी पार न हो सके, वह पूर्ण स्थूल है। जो किसी से रुक जाए और किसी से नहीं तथा किसी में समा जाए और किसी में नहीं अथवा किसी-में-से पार हो जाए और किसी- में से नहीं, वह कम सूक्ष्म तथा कम स्थूल है अर्थात् उसमें सूक्ष्मता तथा स्थूलता दोनों मिले हुए हैं। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003127
Book TitleJain Darshan aur Vigyan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMahendramuni, Jethalal S Zaveri
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year2008
Total Pages358
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari, Philosophy, & Science
File Size15 MB
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