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दर्शन और विज्ञान आरोपित होते हैं। जैन दर्शन संहति को 'स्पर्श' गुण मानता है। अकेले परमाणु में संहति होती ही नहीं है। अकेले परमाणु में दो स्पर्श होते हैं। स्निग्ध-रूक्ष के युग्म में से एक और शीत उष्ण के युग्म में से एक। इस प्रकार संहति' जो लघु-गुरु स्पर्श गुणों से उद्भत होती है, परमाणु का मूलभूत गुण नहीं है।
अब तक हमने केवल ऐन्द्रिय ज्ञान की चर्चा की। जैन दर्शन में अतीन्द्रिय ज्ञान का विस्तृत रूप से विवेचन उपलब्ध होता है। अतीन्द्रिय ज्ञान में पदार्थ के वस्तु-निष्ठ गुण उसी रूप में जाने जाते हैं जिस रूप में वे वस्तुत: ही हैं, क्योंकि यहां आत्मा का ज्ञेय से प्रत्यक्ष सम्बन्ध होता है। अतीन्द्रिय ज्ञान में आत्मा किसी भौतिक साधन की सहायता के बिना पदार्थ के गुणों का ज्ञान करती है; अत: इन्द्रिय आदि साधनों के हस्तक्षेप के कारण जो भिन्नता अनुभूत गुण और वस्तु-निष्ठ गुण में उत्पन्न हो जाती है, वह यहां नहीं होती। इस प्रकार के ज्ञान की सहायता से परमाणु और स्कन्ध में रह हुए वस्तु-सापेक्ष वर्णादि गुण का ज्ञान मनुष्य कर सकता है।
एडिंग्टन के दर्शन में प्रयुक्त 'भौतिक विज्ञान का विश्व' और 'भौतिक विश्व' इन दो शब्दों के उलझन की चर्चा हम कर चुके हैं। अब जैन दर्शन के आलोक में इन दो शब्दों के अर्थ अधिक स्पष्ट हो सकता है। 'भौतिक विश्व' पौद्गलिक विश्व है, जिसमें परमाणु और स्कन्ध अपना-अपना वास्तविक अस्तित्व रखते हैं, एक दूसरे के साथ जुड़ते हैं और एक दूसरे से पृथक होते हैं-यह भेद और संघात की क्रिया वस्तु-सापेक्ष रूप से चलती रहती है। जब इस विश्व को हम अतीन्द्रिय ज्ञान से जानते हैं, तब हमारे ज्ञान में आने वाला विश्व भी 'भौतिक विश्व' के सदश ही होता है, किन्तु जब इंद्रिय, मन और बाह्य उपकरणों की सहायता से हम 'भौतिक विश्व' को जानते हैं तब हमारे ज्ञान में आने वाले विश्व और 'भौतिक विश्व' में कुछ अन्तर रह जाता है। यह अन्तर हमारे अथवा ज्ञाता के इन्द्रिय, मन और अन्यान्य साधनों के हस्तक्षेप तथा सीमितता के कारण उत्पन्न होता है। 'भौतिक विज्ञान' भी इस प्रकार के ऐन्द्रिय ज्ञान का ही विशिष्ट प्रकार है। अत: इसके द्वारा जाने जाने वाले विश्व को हम 'भौतिक विज्ञान का विश्व' कह सकते हैं। इस दृष्टि से इसके नियमों को 'ज्ञाता-सापेक्ष' मानना
१. स्पर्श पुद्गल का मूल गुण है। उसके आठ भेद है-स्निग्ध, रुक्ष, शीत, उष्ण, लघु, गुरु, मृदु,
कठोर। इसमें से स्निग्ध-रुक्ष व शीत-उष्ण-ये चार स्पर्श मौलिक हैं और शेष चार स्पर्श परमाणुओं के संयोग से उत्पन्न होते हैं। रुक्ष, स्निग्ध आदि केवल स्पर्श की अभिव्यक्ति के प्रकार नहीं हैं, किन्तु परमाणु में वास्तु-सापेक्ष से रहने वाले गुण हैं। चैतन्य की अनुभूति के
साथ इनकी स्थायी सत्ता नहीं बदलती। २. संहति-शून्य परमाणु की चर्चा 'आपेक्षिकता के सिद्धांत' की समीक्षा में विस्तृत रूप से की
जायेगी।
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