________________
२९४
जैन दर्शन और विज्ञान कर हुए डॉ. गेमो लिखते हैं.' 'जब विश्व सिकुड़ रहा था, तब क्या विश्व की सभी प्रक्रियाएं उल्टे क्रम से चलती थी? यह प्रश्न हम अपनी कल्पना के बल पर अपने आपको पूछ सकते हैं। इससे आगे यह कल्पना भी कर सकते हैं कि क्या साठ से अस्सी करोड़ वर्ष पूर्व आप यह पुस्तक उल्टे क्रम से - अंतिम पृष्ठ से प्रारम्भ कर आदि पृष्ठ की ओर पढ़ रहे थे ? अथवा कल्पना को इससे भी आगे दौड़ाने पर यह प्रश्न भी हो सकता है कि क्या उस समय मनुष्य अपने मुंह में से पकाई हुई मुर्गी निकाल कर, अपने रसोईघर में उसमें जीवन डालकर उसे बाहर खेत में भेजा करते थे; जहां वे मुर्गियां वृद्धावस्था से युवावस्था और युवावस्था से बाल-अवस्था को प्राप्त होती हुई अंत में अण्डे का स्वरूप धारण कर लेती थीं? इस प्रकार के प्रश्नों का उत्तर केवल वैज्ञानिक आधार पर नहीं दिया जा सकता। क्योंकि जब विश्व सिकुड़ता - सिकुड़ता उत्कृष्ट स्थिति को प्राप्त हुआ था, तब विश्व- स्थित समस्त जड़- राशि केवल एक छोटे से अणु के भीतर समाहित हो गई थी और इस प्रक्रिया के कारण संकोचमान - विश्व में 'कौन-सी क्रिया किस रूप में होती थी?' इसका सारा इतिहास ध्वस्त हो गया । "
डॉ. गेमो द्वारा किये गये इस निरूपण की समीक्षा जैन दर्शन के 'कालचक्रीय-सिद्धांत' के आलोक में करने से सुप्रसिद्ध वैज्ञानिक की विचित्र कल्पनाओं का और प्रश्नों का समाधान सहज रूप से मिलना सम्भव हो सकता है । प्रकृति की प्रक्रियाओं के उलटने का अर्थ 'पुस्तक को अंत से शुरू कर आदि तक पढ़ना' और 'मुंह से मुर्गी निकाल कर मुर्गी का ह्रास होकर अण्डे में प्रविष्ट होना' आदि नहीं है । किन्तु उसका अर्थ होता है - पुद्गल के वर्ण, गन्ध, रस और स्पर्श - इन मूल गुणों की पर्यायों में हानि-वृद्धि होना और इसके परिणामस्वरूप ही मनुष्यों के आयुष्य, ऊंचाई, अस्थि- संख्या आदि जीवन से सम्बन्धित प्रक्रियाओं में अवसर्पिणी काल में उत्तरोत्तर ह्रास और उत्सर्पिणी काल में उत्तरोत्तर विकास होता रहता है । सादि विश्व- सिद्धान्त और जैन दर्शन
सादि-विश्व-सिद्धान्तों के विषय में एक बात ध्यान देने योग्य यह है कि
१. वन, टू, थ्री
इन्फिनिटी, पृ० ३३५ ।
२. जैन दर्शन के कालचक्र - सिद्धान्त में प्राणियों की ऊंचाई आदि का जो निरूपण किया गया है, उसकी पुष्टि कुछ एक आधुनिक वैज्ञानिक खोजों द्वारा हुई है। एक पुरातत्त्व अन्वेषण-युगल डॉo लूई लीके और श्रीमती मेरी लीके ने पूर्व अफ्रीका से टांगानिका में आज से २० लाख वर्ष पूर्व के मनुष्य एवं पशुओं के कुछ अवशेषों की खोज की है। उनके अनुसार उस युग में रहने वाली भेड़ के सींग १५ फीट लम्बे थे तथा एक पक्षी की लम्बाई दो मंजिल मकान जितनी थी, जिसके अंडे 'बाउलिंग' गेंद से भी बड़े होने चाहिए। देखें, रीडर्स डाइजेस्ट, अप्रेल १९६४ में The Man of Two Millions Years ago and His Companions शीर्षक लेख ।
Jain Education International
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org