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दर्शन और विज्ञान अनुभूत होता' अर्थात यदि पदार्थ में स्वयं किसी भी प्रकार का वैशिष्ट्य न हो तो सभी ज्ञाता उसे समान रूप से अनुभव करें, यह संभव नहीं हो सकता। उदाहरणार्थ-दूब का रंग सभी मनुष्यों को हरा दिखाई देता है। एडिंग्टन का मत यह है कि इसमें दूब की स्वयं की कोई विशिष्टता नहीं है। ज्ञाता अपनी विशिष्ट चैतन्य शक्ति के कारण ही दूब को हरी देखता है, किन्तु यह न तो सामान्य तर्क के आधार पर सही १.यह सही है कि कभी-कभी एक ही पदार्थ भिन्न-भिन्न ज्ञाताओं को भिन्न-भिन्न वर्णादि वाला
अनुभूत होता है, किन्तु इसका कारण व्यक्तिगत क्षमता और साधनों की भिन्नता है। जैसे वर्णांध व्यक्तियों को वर्णों की विविधता का कोई पता नहीं चलता। इस प्रकार मुझे जो वस्तु स्वाद में मीठी लगती है, वह दूसरे व्यक्ति को खारी भी लग सकती है। किन्तु इसका अर्थ यह नहीं कि वस्तु-निष्ठ कोई रस उस वस्तु में है ही नहीं। अनुभूति में रसों की भिन्नता का होना हम दोनों की रसनेन्द्रिय की क्षमता और रचना-भिन्नता का द्योतक है। जो 'रस' हमें अनुभूति में ज्ञात होता है, वह वस्तु-निष्ठ रस के साथ रसनेन्द्रिय के रासायनिक और भौतिक प्रक्रिया के फलस्वरूप निष्पन्न 'रस' है। अत: यदि मेरी और दूसरे व्यक्ति की रसनेन्द्रिय में थोड़ा-सा भी अन्तर हो, तो अनुभूत 'रस' दोनों के लिए भिन्न-भिन्न होगा। इसको हम गाणितिक समीकरण के द्वारा इस प्रकार बता सकते हैं : यदि अ वस्तु-निष्ठ गुण हो, ब, और ब, दो ज्ञाताओं की इन्द्रियों की रचना के द्योतक अचल हों और क, और क क्रमश: दोनों ज्ञाताओं द्वारा अनुभूत गुण हों,
अ+ब, = क, होगा, और
अ+ब = क होगा। इसी समीकरण से स्पष्ट हो जाता है कि यदि
हो, तो
क, = क, होगा अर्थात् दोनों ज्ञाताओं को समान अनुभूति होगी। सामान्यतया यही होता है, क्योंकि अधि कांश रूप में मनुष्यों के लिए ब, ब आदि भिन्न-भिन्न नहीं होते। इन समीकरणों से यह भी स्पष्ट हो जाता है कि अ और के समान तभी हो सकते हैं जबकि ब का मूल्य शून्य हो अर्थात् इन्द्रिय रूप साधन की रचना और क्षमता का बिल्कुल ही प्रभाव हमारे ज्ञान पर न पड़े, तभी हमारी अनुभूति में आने वाले गुण पदार्थ के वस्तु-निष्ठ गुण हो सकते हैं। अतीन्द्रिय ज्ञान में यह संभव हो जाता है। साथ ही यह भी संभव है कि एक ही ज्ञाता के लिए ऐन्द्रिय रचना और क्षमता परिवर्तित हो जाये, अर्थात् ब का मूल्य अचल न रहे; तब एक ही ज्ञाता को एक ही पदार्थ भिन्न-भिन्न परिस्थितियों में भिन्न रूप से अनुभूत होता। जैसे-एक मनुष्य यदि चीनी में मिलाया हुआ दूध पीता है तो उसे वह मीठा लगता है। वही मनुष्य मिठाई खाने के बाद उसी दूध को पीता है तो वह फीका लगता है। इसका अर्थ यही होता है कि ब का मूल्य दोनों परिस्थितियों में भिन्न-भिन्न होगा। किन्तु सामान्य परिस्थिति में ब के मूल्य को सभी ज्ञाताओं के लिए सम माना जा सकता है।
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