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________________ २७९ विश्व का परिमाण और आयु १. विश्व का परिमाण स्थिर है। २. विश्व का परिमाण विस्तृत हो रहा है। 'विश्व की आयु' के विषय में जो सिद्धांत प्रस्तुत हुए हैं वे भी इन दो विचारधाराओं पर आधारित हैं। विश्व की आयु क्या है? सादि और सान्त विश्व के सिद्धांत "विश्व की आयु क्या है'' इस प्रश्न के दो अर्थ होते हैं-वर्तमान में विश्व की आयु क्या है अर्थात् जब से विश्व की आदि हुई है, तब से आज तक कितना काल बीत चुका? दूसरा अर्थ है “विश्व की सम्पूर्ण आयु क्या है? अर्थात् जब से विश्व का प्रारम्भ हुआ तब से लेकर जब तक उसका अंत होगा, तब तक कितना काल बीतेगा? "विश्व की आयु क्या है?" इस प्रश्न का विज्ञान में महत्त्वपूर्ण स्थान रहा है। इस प्रश्न के उत्तर में भी वैज्ञानिकों के दो मत रहे हैं १. विश्व भूतकाल में किसी एक निश्चित समय पर अस्तित्व में आया और भविष्य में किसी एक निश्चित समय पर वह अस्तित्व-विहीन भी हो जाएगा। २. विश्व काल की दृष्टि से अनादि और अनन्त है। प्रथम मान्यता का आधार मुख्यत: तो विश्व-विस्तार' का सिद्धांत है। प्रयोगों के द्वारा दूरस्थ आकाशगंगाओं के बढ़ने की गति का माप निकाला गया और जाना गया कि जिस वेग से आकाशगंगाएं अंतरिक्ष में बढ़ रही हैं, वह अत्यधिक तीव्र है। अपनी पृथ्वी के समीप रही हुई आकाशगंगाएं एक सैकिंड में करीब १०० मील दूर निकल जाती हैं, जबकि जो आकाश-गंगाएं २-१/२ करोड़ प्रकाश-वर्ष दूर हैं, वे लगभग २४,००० मील प्रति सैकिंड की गति से दूर हो रही हैं। प्रयोगों के आधार पर एड्वीन हबल (Edwin Hubble) ने एक नियम इस सम्बन्ध में प्रस्तुत किया है। इस नियम के अनुसार ६० लाख प्रकाश-वर्ष की मर्यादा में स्थित आकाशगंगाओं के लिए, गति का आधार उनकी पृथ्वी से दूरी जाती है। इसका अर्थ यह होता है कि ज्यों-ज्यों आकाशगंगाएं पृथ्वी से दूर जाती हैं, त्यों-त्यों उनकी गति बढ़ती है। इस नियम के आधार पर यदि आकाशगंगाओं की भूतकालीन गति का अध्ययन किया जाए, तो हम इस निष्कर्ष पर पहुंचते हैं कि इस विश्व में करीब २०० करोड़ वर्ष पूर्व सभी आकाशगंगाएं एक ही स्थान में थीं। यद्यपि इस निर्णय की कल्पना का आधार यह है कि आकाशगंगाओं की गति जैसी वर्तमान में है, वैसी ही सदा थी। इस निर्णय के बाद किये गए प्रयोगों के आधार पर यह संख्या १००० करोड़ वर्ष हो जाती है। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003127
Book TitleJain Darshan aur Vigyan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMahendramuni, Jethalal S Zaveri
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year2008
Total Pages358
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari, Philosophy, & Science
File Size15 MB
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