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जैन दर्शन और विज्ञान विश्व का परिमाण स्थिर या बढ़ता हुआ?
आइन्स्टीन के उपरोक्त विश्व-परिमाण के निश्चय के अनन्तर एक ऐसी प्रक्रिया वैज्ञानिकों के सामने आई, जिससे विश्व के परिमाण और आकार के विषय में निश्चित रूप से कुछ भी कहना उनके लिए सम्भव नहीं रहा। यह प्रक्रिया दूरवीक्षण यन्त्र (telescope) के द्वारा वैज्ञानिकों के सामने आई। दूरवीक्षण यन्त्र से जब विश्व के अति दूर भागों में स्थित आकाश-गंगाओं (galaxies) की गति का अध्ययन किया गया, तब पता चला कि ये आकाशगंगाएं एक दूसरे से दूर जा रही हैं-अर्थात् ऐसा लगा कि विश्व बड़ा होता जा रहा है। जिस प्रकार गुब्बारे में (baloon) हवा भरने से वह फुलता है-विस्तृत होता है, उसी प्रकार विश्व भी विस्तृत हो रहा है। इस प्रकार कि प्रक्रिया से वैज्ञानिकों में दो मत हो गए।
जो प्रक्रिया वस्तुत: देखी गई थी, वह यह थी कि दूर-स्थित आकाश-गंगाओं का वर्णपट-मापकयन्त्र (spectrometer) द्वारा अध्ययन किया गया, तब उनके वर्णपट (spectrum) में लाल रेखा (red line) में परिवर्तन दिखाई दिया। लाल रेखा के परिवर्तन से अनुमान किया गया कि दूरस्थ आकाशगंगाएं एक दूसरे से दूर जा रही हैं अर्थात् विश्व विस्मृत हो रहा है।
विश्व-विस्तार के सिद्धांत में संदिग्धता का स्पष्ट उदाहरण विख्यात ब्रिटिश वैज्ञानिक सर जेम्स जीन्स के शब्दों में मिलता है: 'किन्तु तारापुञ्जों की इन गतिओं के विषय में संदिग्धता को पूर्ण अवकाश रह जाता है कि ये वास्तविक हैं या नहीं? इनका प्रतिपादन कोई भी प्रत्यक्ष माप की प्रक्रिया पर आधारित नहीं है।' आगे चलकर वे स्पष्ट करते हैं : “दूरस्थित निहारिकाएं अपने से दूर जा रही हैं, इस मान्यता का केवल यही कारण है कि उनका जो प्रकाश हमें दिखाई देता है, वह सामान्यत: जितना होना चाहिए उससे अधिक है। किन्तु गति के अतिरिक्त अन्य प्रक्रियाएं भी प्रकाश को अधिक लाल बना सकती हैं। उदाहरणार्थ, सूर्य का प्रकाश केवल सूर्य के भार के कारण लाल बन जाता है; उससे कहीं और अधिक लाल वह सूर्य के वातावरण के दबाव के कारण बनता है, जैसे कि हम सूर्योदय एवं सूर्यास्त के समय देखते हैं। अन्य प्रकार के ताराओं का प्रकाश भी कोई रहस्यमय प्रकार से लाल बनता है, जिस रहस्य का उद्घाटन हम अब तक नहीं कर सके हैं। इसलिए दूरस्थ निहारिकाएं आकाश में स्थिर होने पर भी, उनका प्रकाश अधिक लाल होगा और इस रक्तीकरण के आधार पर वे निहारिकाएं हम से दूर जा रही हैं,' इस प्रकार की धारणा के प्रलोभन में हम आ जाते
इस चर्चा का उपसंहार करते हुए हम यह कह सकते हैं कि विश्व परिमाण की स्थिरता के बारे में वैज्ञानिकों में दो मत हैं
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