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________________ विश्व का परिमाण और आयु २७७ माउण्ट विलसन वेधशाला के प्रसिद्ध खगोलवेत्ता एड्वीन हबल (Edwin Hubble) ने प्रयोगों के द्वारा इकाई घनफल आकाश में स्थित औसत संहति-राशि की संख्या निकाली गई है। उस संख्या का आइन्स्टीन के क्षेत्र समीकरण में उपयोग करने से यह निष्कर्ष निकलता है कि विश्व की वक्रता-त्रिज्या (radius of curvature) ३५,०००,०००,००० प्रकाश-वर्ष है अर्थात् २.१ x १०२३ माईल है। दूसरे शब्दों में एक प्रकाश की किरण जिसकी गति प्रति सैकिण्ड लगभग १,८६,००० माईल की है, अगर विश्व की परिक्रमा करने निकले, तो उसे एक चक्कर लगाने में २० अरब से भी अधिक वर्ष लग जाएंगे। आइन्स्टीन के उक्त निर्णय के बाद, जब विश्व-विस्तार का सिद्धांत आया, तब उसके आधार पर विश्व की वक्रता-त्रिज्या फिर निकाली गई। यह करीब ५० करोड़ प्रकाश-वर्ष है। आइन्स्टीन की कल्पना ससीम वर्ष की है, किन्तु एक वैज्ञानिक असीम विश्व का प्रतिपादन भी करते हैं। डॉ. फ्रेड होयल के विश्व-सिद्धांत में 'अनन्त विश्व' का प्रतिपादन हुआ है। इसके अतिरिक्त सोवियत वैज्ञानिक भी असीम विश्व का प्रतिपादन करते हैं। सुप्रसिद्ध सोवियत लेखक व. मेजेन्तसेव ने 'विश्व और परमाण नामक अपनी पुस्तक में लिख है : “अगर हम यह विचार स्वीकार करें कि विश्व-आकाश की कहीं सीमा है, तो तुरन्त यह प्रश्न उठता है-इस सीमा के पार क्या है? विश्वाकाश में ब्रह्माण्ड की कोई सीमा नहीं हो सकती। महाजागतिक द्वीपपुंज पर नक्षत्र-जगत की गठन क्या है, हम अभी नहीं जानते, लेकिन चाहे यह असंख्य द्वीप' मंदाकिनियां (आकाशगंगाएं) हों या ब्रह्माण्ड अनेक विशाल ‘महाजागतिक द्वीप-समूहों'-मेटागैलिक्टकों (बाह्य मंदाकिनियों) से बना हो, हर सूरत में हमारे चारों तरफ की दुनिया असीम है।" फिर भी विश्व सांत है, या अनन्त? इस प्रश्न का पूर्ण रूप से समाधान नहीं हो पाया; क्योंकि विश्व की वक्रता गाणितिक रूप में ऋण (negative) अथवा धन (positive)-दोनों में से एक हो सकती है और इसके अनुसार ही विश्व अनन्त या सांत हो जाता है। विश्व-सम्बन्धी मूलभूत समीकरणों (equations) को हल करने पर विश्व सांत और बद्ध (closed) न होकर, अनन्त और खुला (open) पाया जाता है। जबकि हबल के द्वारा की गई तारापुञ्जों के तेज की गणना हमें बद्ध एवं बहुत ही छोटे (सांत) विश्व, जिसकी त्रिज्या केवल थोड़े करोड़ प्रकाश-वर्ष ही है, की कल्पना पर पहुंचाती है। १. हबल द्वारा दी गई औसत घनत्व-राशि इस प्रकार है : ०००००००००००००००००००००००००००००१ ग्राम प्रति घन सेण्टीमीटर (दखें, दी यूनिवर्स एण्ड डॉ. आइन्सटीन, पृ० १०५ ।) Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003127
Book TitleJain Darshan aur Vigyan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMahendramuni, Jethalal S Zaveri
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year2008
Total Pages358
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari, Philosophy, & Science
File Size15 MB
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