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जैन दर्शन और विज्ञान बाद आकाश........' यह कल्पना भी अचिन्त्य है। आपेक्षिकता के सिद्धांत से पहले जो रूढ़ विचार प्रचलित था, उसके अनुसार आकाश (विश्व) अनन्त था। यद्यपि अनन्त आकांश की कल्पना अचिन्त्य है, फिर भी भौतिक विज्ञान-जगत में इसी कल्पना को स्वीकार कर हमें संतोष मान लेना पड़ा। यद्यपि यह कल्पना चित्त को अशान्त करने वाली थी, फिर भी अतार्किक नहीं थी। अब आइन्स्टीन का सिद्धांत हमें इस दुविधा से बाहर ले जाता है। 'आकाश सान्त भी है, अनन्त भी' अथवा 'सान्त, किन्तु असीम'-ये शब्द प्राय: आकाश के लिए प्रयुक्त होने लगे हैं।"
- वैज्ञानिक वरनर हाइजनबर्ग विश्व की सान्तता-अनन्तता का स्पष्टीकरण करते हुए लिखते हैं : “विश्व द्वारा अवगाहित आकाश सान्त हो, ऐसी सम्भावना है। इसका अर्थ यह नहीं होता कि कोई एक स्थान पर विश्व का अन्त आ जाता है। उक्त कथन का तात्पर्य यही है कि विश्व में किसी एक ही दिशा में गति करने वाला पदार्थ अनन्त: उसी स्थान पर पहुंच जाता है, जहां से वह चलना प्रारम्भ हुआ था। चतुर्वैमितिक विश्व की यह स्थिति द्विवैमितिक पृथ्वी-तल (Surface) के सदृश होती है, जहां एक स्थान से पूर्व की दिशा में निरन्तर चलने वाला व्यक्ति, उसी स्थान पर पश्चिम की ओर से पुन: पहुंच जाता है।"
___ आपेक्षिकता के सिद्धांत के सुप्रसिद्ध व्याख्याकार प्रो. एन. आर. सेन, आइन्स्टीन के विचारों को उद्धृत करते हुए लिखते हैं : “आइन्स्टीन के सापेक्षवाद-सिद्धान्त से जो एक बात हमें मिलती है, वह यह है कि चतुर्वैमितिक विश्व आकाशीय विमितियों में सांत है और काल की विमिति में अनन्त है। विश्व का आकार बेलनाकार (cylinderical) है, जिसकी बाह्य सतह उस दिशा में तो सीमित है, जिसमें रेखाओं के द्वारा बेलनाकार की उत्पत्ति हुई है। यह सीमित विमिति विश्व-वेलन की तीन आकाशीय विमितियों को सूचित करती है। किन्तु वेलन इन दो विमितियों में तो अनन्त है। उसी तरह विश्व भी काल-विमिति में अनन्त है अर्थात् काल की दृष्टि से वह अनंत भूत से अनन्त भविष्य तक रहता है।"
वैज्ञानिकों के उपरोक्त विचारों से विश्व का आकार और परिमाण, बहुत कुछ स्पष्ट हो जाता है। फिर भी आधुनिक विज्ञान के बहुत सारे सिद्धांतों की तरह आइन्स्टीन का ससीम विश्व उतना ही दृष्टिगम्य हो सकता है, जितना की अणु में स्थित ऋणाणु (Electron) या प्रकाशाणु (Photon) दृष्टिगम्य है। परन्तु गणित के आधार पर विश्व का यथार्थ परिमाण निश्चिततापूर्वक निकाला जा सकता है। यदि हम मान लेते हैं कि हमारी आकाशगंगा की समीपवर्ती आकाश में स्थित जड़ पदार्थ का औसत घनत्व सारे विश्व में स्थित जड़ पदार्थ के औसत घनत्व के समान है तो आइन्स्टीन के समीकरण से विश्व की वक्रता-त्रिज्या निकाली जा सकती है।
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