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________________ २८० जैन दर्शन और विज्ञान विश्व-विस्तार के आधार पर विश्व की आदि को समझाने के लिए कुछ वैज्ञानिकों ने प्रयत्न किया है, जिनमें से एबे लेमैत्रे (Abbe Lemaitre) और डॉ. ज्योर्ज गेमो (George Gamow) विश्व की आदि है', इस सिद्धांत को स्वीकार करते बेल्जियम के सुप्रसिद्ध विश्व-विज्ञानवेत्ता एबे लेमैत्रे के विचारानुसार यह विश्व प्रारम्भिक स्थिति में एक अद्भुत अणु के रूप में था। जब उस अणु का विस्फोट हुआ, तब से उसका विस्तार होना प्रारम्भ हुआ। आज तक वह इतने विशाल रूप को पा चुका है तथा और भी विस्तृत हो रहा है। इसी से सादृश्य रखने वाला एक और सिद्धांत वाशिंग्टन विश्वविद्यालय के सप्रसिद्ध वैज्ञानिक डाक्टर ज्योर्ज गेमो ने प्रस्तुत किया है। इस सिद्धांत के अनुसार आज से करीब ५० करोड़ वर्ष पूर्व, इस विश्व का आदि रूप समप्रकार की किरणों का गोला था, जिसका तापमान इतना अधिक था कि जिसकी कोई कल्पना ही नहीं की जा सकती। वर्तमान में किसी भी आकाशीय ताराओं के अन्तरतम गर्भ में भी वह तापमान विद्यमान नहीं है। वह १५० करोड़ डिग्री से भी अधिक था। विश्व की इस प्रारम्भावस्था में न तो कोई पदार्थ (Elernent) था, न कोई लघुतम द्रव्यकण (Molecule) ही और न कोई अणु (Atom) भी। केवल स्वैरविहारी न्यूट्रोन' इधर-उधर घूम रहे थे। जब यह गोला विस्तृत होना शुरू हुआ, तब इसका तापमान क्रमश: घटने लगा। पांच मिनट के अस्तित्व में वह तापमान घटकर करीब १० करोड़ डिग्री हो गया। तब इधर-उधर घूमने वाले न्यूट्रोनों की गति थोड़ी मन्द हुई; वे एक-दूसरे से मिलने लगे व परस्पर जुड़ने लगे; क्रम से काल बीतने पर लघुतम द्रव्यकण और पदार्थ बनने लगे। इस प्रकार वर्तमान सभी पदार्थ विश्व में उषाकाल के थोड़े-से क्षणों में बने थे और आज ५० करोड़ वर्ष से विस्तारमान विश्व में अपना कार्य कर रहे हैं। केम्ब्रिज रेडियो-ज्योतिर्विज्ञान के प्रोफेसर मार्टीन रीले और उनके अन्य पांच साथियों द्वारा रखे गए विश्व-सिद्धांत के अभिमतानुसार विश्व का एक निश्चित १. आधुनिक अणु-विज्ञान के अनुसार प्रत्येक पदार्थ के अणु में केन्द्र होता है, जिसे नाभि (Nucleus) कहते हैं। उसके चारों ओर उससे भी सूक्ष्म ऋण-आवेशित कण, जिन्हें इलेक्ट्रोन कहते हैं, बहुत तेज गति से चक्कर काटते रहते हैं। सूक्ष्म धन-आवेशित कण, जिन्हें प्रोटोन कहते हैं और सूक्ष्म आवेश-रहित कण, जिन्हें न्यूट्रोन कहते हैं, नाभि में स्थिर रूप से रहते हैं। इलेक्ट्रोन का भार समग्र अणु के भार के सहस्रांश से भी कम होता है। नाभिक कणों में ही अणु का अधिकांश भार स्थित होता है। इस प्रकार प्रोटोन और न्यूट्रोन अधिक भारवान होते हैं, जबकि इलेक्ट्रोन अल्प भारवान् । इलेक्ट्रोन ऋण-आवेशित, प्रोटोन धन-आवेशित और न्यूट्रोन आवेश-रहित होते हैं। दिखें, ८वां प्रकरण)। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003127
Book TitleJain Darshan aur Vigyan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMahendramuni, Jethalal S Zaveri
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year2008
Total Pages358
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari, Philosophy, & Science
File Size15 MB
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