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________________ २७२ जैन दर्शन और विज्ञान अवसर्पिणी काल में समय बीतने के साथ-साथ मनुष्यों का आयुष्य, ऊंचाई और पृष्ठ-करंडक (पृष्ठ-अस्थि) की संख्या में हानि होती रहती है। निम्न कोष्ठक के द्वारा उन हानियों का प्रमाण स्पष्ट हो जाएगा। प्रत्येक आरे के प्रारम्भ में आयुष्य आदि का मान : an १२८ ६४ mx i will २० वर्ष आरा-क्रमांक आयुष्य ऊंचाई | पृष्ठ-अस्थि-संख्या ३ पल्योपमः ६००० धनुष्य २५६ २ पल्योपम ४००० धनुष्य १ पल्योपम २००० धनुष्य १ कोड़ पूर्व १५०० धनुष्य ४८ १३० वर्ष ७ हाथ २१ हाथ उत्सर्पिणी काल में आयु, ऊंचाई पृष्ठ-अस्थि-संख्या आदि में क्रमश: वृद्धि होती है। वर्तमान युग वर्तमान में जो आरा चल रहा है, वह अवसर्पिणी काल का पांचवां आरा है। इस आरे का प्रारम्भ श्रमण महावीर के निर्वाण के ३ वर्ष ८-१/२ मास पश्चात् हुआ था। भगवान् महावीर का निर्वाण ई. पू. ५२७ में हुआ था; अत: ई. पू. ५२७ में पांचवें आरे का आरम्भ होता है। यह आरा २१००० वर्ष का है। छठे आरे का प्रारम्भ में होने वाली स्थिति का वर्णन विस्तृत रूप से जैन साहित्य में मिलता है। “उस समय दु:ख से लोगों में हाहाकार होगा। अत्यन्त कठोर स्पर्श वाला, मलिन, धूलि-युक्त पवन चलेगा। वह दु:सह व भय उत्पन्न करने वाला होगा। वर्तुलाकार वायु चलेगी, जिससे धूलि आदि एकत्रित होगी। पुन:-पुन: धूलि उड़ने से दशों दिशाएं रज:सहित हो जाएंगी। धूलि से मलिन अंधकार समूह के हो जाने से प्रकाश का आविर्भाव बहुत कठिनता से होगा। समय की रूक्षता से चन्द्रमा अधिक शीत होगा और सूर्य भी अधिक तपेगा। उस क्षेत्र में बार-बार बहुत अरस-विरस मेघ, क्षार मेघ, विद्युन्मेघ, अमनोज्ञ मेघ, प्रचण्ड वायु वाले मेघ बरसेंगे।..........उस समय भूमि अग्निभूत, मुर्मुरभूत भस्मभूत हो जाएगी। पृथ्वी पर चलने वाले जीवों को बहुत कष्ट होगा। उस क्षेत्र के मनुष्य विकृत वर्ण, गन्ध, रस, १. पल्योपम के असंख्यात वर्ष होते हैं। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003127
Book TitleJain Darshan aur Vigyan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMahendramuni, Jethalal S Zaveri
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year2008
Total Pages358
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari, Philosophy, & Science
File Size15 MB
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