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विश्व का परिमाण और आयु है। पूर्व-पश्चिम, उत्तर-दक्षिण विस्तार सात रज्जु, एक रज्जु, पांच रज्जु और एक रज्जु है। नवीन आकृति पूर्णरूप से सममित (symmetrical) है। रज्जु का अंकीकरण
रज्जु जैन दर्शन का पारिभाषिक शब्द है। जैन दर्शन में जहां लोक के सम्बन्ध से दूरी का विवेचन हुआ है, वहां अधिकांशतया ‘रज्जु' शब्द का उपयोग हुआ है। ‘रज्जु' को हम जैन ज्योति-भौतिकी (astrophysics) का क्षेत्र-मान कह सकते हैं। व्यावहारिक भाषा में एक रज्जु का मान अंसख्यात योजन बताया गया है। कुछ विद्वानों ने रज्जु को अंकों के द्वारा व्यक्त करने का--अंकीकरण करने का प्रयत्न किया है। रज्जु' का मान निन्नोक्त परिभाषा में दिया गया है :
"२,०५७,१५२ योजन प्रतिक्षण की गति से निरन्तर चलने वाला देव छ: महीने में जितनी दूरी तय करता है, उसे एक रज्जु कहा जाता है।"
इस आधार पर १ रज्जु = १०० माईल होता है। गणितीय विवेचन का उपसंहार इन दो तथ्यों में आ जाता है(१) विश्व त्रिशरावसम्पुटाकार से स्थित है।
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(२) विश्व का घनफल १० घन माईल से भी अधिक है। विश्व : काल की दृष्टि से विश्व की अनादि-अनन्तता
जैन दर्शन के अनुसार विश्व शाश्वत है। यह तथ्य जैन आगमों में अनेक स्थलों में अनेक प्रकार से समझाया गया है। लोक और अलोक-"ये दोनों पहले से हैं
और पीछे रहेंगे; अनादि काल से हैं और अनन्त काल तक रहेंगे। दोनों शाश्वत भाव हैं; अनानुपूर्वी हैं। इनमें पौर्वापर्य (पहले-पीछे का) क्रम नहीं है।''
समग्र विश्व पांच अस्तिकायों का समूह है। ये पांचों अस्तिकाय धुव, नियत, अक्षय, अव्यय, अवस्थित और नित्य हैं। इसलिए समग्र विश्व स्वत: ध्रुव, नियत, शाश्वत, अक्षय, अवस्थित और नित्य है। दूसरे शब्दों में, यह विश्व भूतकाल में विद्यमान था, वर्तमान काल में विद्यमान है और भविष्य में विद्यमान रहेगा। वह न तो कभी बनाया गया और न कभी विनाश को प्राप्त होगा। काल की दृष्टि से यह आदि-रहित और अन्त-रहित है।
जैन दर्शन अनेकान्तवादी दर्शन है। किसी भी विचार के विषय में वह
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