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________________ जैन दर्शन और विज्ञान श्वेताम्बर परम्परा में लोक के विषय में मूल मान्यताओं में उपरोक्त मान्यताओं के अतिरिक्त इन मान्यताओं का भी समावेश होता है : २६८ १. लोक का आयाम - विष्कम्भ ( लम्बाई-चौड़ाई) समान ऊंचाई पर समान होना चाहिए । २. लोक की लम्बाई-चौड़ाई में उत्सेध की अपेक्षा क्रमिक वृद्धि-हानि होनी चाहिए । इन मान्यताओं को यदि स्वीकार किया जाये, तो 'उत्तर - दक्षिण सर्वत्र सात रज्जु बाहुल्य' की कल्पना संगत नहीं होती है । इसलिए श्वेताम्बर - परम्परा के आचार्यों ने 'उत्तर-दक्षिण सर्वत्र सात रज्जु' वाली मान्यता को स्वीकार नहीं किया है । दूसरी ओर ३४३ घनरज्जु वाली मान्यता को वे स्वीकार करते हैं। लोक का कुल आयतन ३४३ घनरज्जु है, जिसमें अधोलोक का घन-फल १९६ घन रज्जु और ऊर्ध्वलोक का घनफल १४७ घन रज्जु है । धवलाकार आचार्य वीरसेन ने लोक के सम्पूर्ण घनफल को ३४३ घन रज्जु तथा अधोलोक के घनफल को १९६ घन रज्जु और ऊर्ध्वलोक के घनफल को १४७ घन रज्जु सिद्ध करने के लिए लोक के उत्तर-दक्षिण सर्वत्र सात रज्जु मोटाई की कल्पना की है, क्योंकि उनके मतानुसार लोक को अन्य प्रकार से मानने पर उक्त घनफल सम्भव नहीं है। आधुनिक गणित-पद्धतियों के प्रकाश में यदि आधुनिक गणितीय पद्धतियों के प्रकाश में उक्त समस्या का अध्ययन किया जाये, तो ऐसा समाधान निकल सकता है, जो उल्लिखित मूल मान्यताओं के साथ संगत हो और उसमें गणितीय विधियों की पूर्णता भी सुरक्षित रहे। इस प्रकार का प्रयत्न करने पर यह निष्कर्ष निकलता है कि लोक का ३४३ घन रज्जु आयतन श्वेताम्बर - र-परम्परा के द्वारा प्रतिपादित मूल मान्यताओं पर निकाला जा सकता है। इस प्रकार के प्रयत्न के फलस्वरूप हम लोकाकृति के जिस निर्णय पर पहुंचते हैं, उसकी ये विशेषताएं उल्लेखनीय हैं। : इस नवीन आकृति में सर्वत्र सात रज्जु बाहुल्य माने बिना भी समग्र लोक का घनफल ३४३ घन रज्जु, ऊर्ध्वलोक का १४७ घन रज्जु और अधोलोक का १९६ घन रज्जु सम्भव हो जाता है । इस नवीन आकार में चारों ओर से लोक का आकार समान दिखाई देता १. आधुनिक 'समाकलन- गणित' में ठोस आकृत्तियों के आयतन निकालने की विधि के आधार पर लोकाकृति का आयतन निकालने पर ३४३ घन रज्जु का आयतन हो सकता है । Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003127
Book TitleJain Darshan aur Vigyan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMahendramuni, Jethalal S Zaveri
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year2008
Total Pages358
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari, Philosophy, & Science
File Size15 MB
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