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________________ २६६ जैन दर्शन और विज्ञान दिगम्बर-परम्परा दिगम्बर-परम्परा के अनुसार लोक का गाणितिक-विवेचन निम्नोक्त है। "लोक के तीन परिमाणों में से (ऊंचाई, लंबाई, चौड़ाई) प्रथम परिमाण अर्थात् ऊंचाई १४ रज्जु' है। दूसरा परिमाण (अर्थात् चौड़ाई) सर्वत्र ७ रज्जु है। तीसरा परिमाण (अर्थात् लम्बाई) सारे लोक में समान नहीं है। लोक के विभिन्न स्थानों पर लोक की लम्बाई भिन्न-भिन्न है। उसको समझने के लिए लोक के (ऊंचाई के प्रमाण से) दो विभागों की कल्पना करनी चाहिए। अर्थात् लोक के दो भाग करने चाहिए, जिसमें से प्रत्येक भाग की ऊंचाई ७ रज्जु हो। इन दो भागों में से, प्रथम अधस्तन भाग (अधोलोक) नीचे (आधार पर) ७ रज्जु लम्बा है और ऊपर क्रमश: घटता-घटता १ रज्जु । इस प्रकार अधोलोक का आकार समलम्बचतुर्भुजाधार समपार्श्व के सदृश होता है, जिसकी ऊंचाई ७ रज्जु, चौड़ाई सर्वत्र ७ रज्जु और लम्बाई नीचे आधार पर ७ रज्जु और ऊपर १ रज्जु है। अधोलोक का घनफल १९६ घन रज्जु है। ऊर्ध्वलोक की ऊंचाई ७ रज्जु है, चौड़ाई सर्वत्र ७ रज्जु है और लम्बाई नीचे १ रज्जु, बीच में ५ रज्जु और ऊपर १ रज्जु है। इस प्रकार ऊर्ध्वलोक दो समान समलम्ब चतुर्भुजाधार समपार्श्व का बना हुआ है। ऊर्ध्वलोक का घनफल १४७ घन रज्जु है। अधोलोक और ऊर्ध्वलोक के घनफलों को मिलाने पर समग्र लोक का घनफल निकलता है; समग्रलोक का घनफल = १९६ + १४७ = ३४३ घन रज्जु श्वेताम्बर-परम्परा श्वेताम्बर-परम्परा के आगम-साहित्य में यद्यपि लोक आयाम, विष्कम्भ आदि के विषय में विस्तृत गाणितिक विवेचन उपलब्ध नहीं है, फिर भी उत्तरवर्ती-ग्रन्थों में जो विवेचन किया गया है, उसके आधार पर यहां लोक का गणितीय विवेचन किया जा रहा है। इन ग्रन्थों के अनुसार लोक की ऊंचाई १४ रज्जु है। दूसरा परिमाण (चौड़ाई) और तीसरा परिमाण (लम्बाई) विभिन्न ऊंचाइयों पर भिन्न-भिन्न है और समान ऊंचाई पर समान है। लोक-प्रकाशकार विनयविजय गणी ने लिखा है : “इस घनीकृत लोक के तीन सौ तैंतालीस घन-रज्जु तत्त्वज्ञों द्वारा माने गए हैं।'' १. रज्जु जैन-खगोल-शास्त्र का नाप है, जिसके विषय में विस्तारपूर्वक विवेचन आगे किया गया Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003127
Book TitleJain Darshan aur Vigyan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMahendramuni, Jethalal S Zaveri
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year2008
Total Pages358
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari, Philosophy, & Science
File Size15 MB
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