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जैन दर्शन और विज्ञान उन्हें इस बात के लिए चिन्तित करती है कि उनके वैज्ञानिक दर्शन को वे किस प्रकार से उनके जीवन-दर्शन के साथ सम्बन्धित कर सकें। किन्तु ऐसा करने में जो मूल्य उन्हें चुकाना पड़ा है, वह उनकी धारणा से अत्यधिक है।' इस प्रकार एडिंग्टन के द्वारा प्रतिपादित दार्शनिक विचारधारा उनके स्वयं का दर्शन है। एडिंग्टन का दर्शन और जैन दर्शन
एडिंग्टन के दर्शन की जैन दर्शन के साथ तुलना करते समय हमें जैन दर्शन की ज्ञान-मीमांसा और तत्त्व-मीमांसा को ध्यान में रखना होगा। जैन दर्शन के अनुसार आत्मा का लक्षण 'उपयोग' अर्थात् चैतन्य-व्यापार है।' चैतन्य की प्रवृत्ति के द्वारा आत्मा-द्रव्यों को जानती है। प्रत्येक द्रव्य में सहज रूप से अनन्त गुण विद्यमान होते है, जो मुख्यतया दो प्रकार के हैं-सामान्य और विशेष। ये गुण द्रव्य में वस्तुनिष्ठ होते हैं। इनको आत्मा जब जानती है, तब वह जानना क्रमश: दर्शन (अनाकार उपयोग) और ज्ञान (साकार उपयोग) कहलाता है। तात्पर्य यह हुआ कि वस्तु (ज्ञेय) के वस्तु-निष्ठ गुणों के कारण ही ज्ञाता (आत्मा) का अवबोध दो प्रकारों मे विभक्त हो जाता है। दूसरी जो जैन ज्ञान-मीमांसा की अपनी मौलिक और विशिष्ट बात है, वह यह है कि ऐन्द्रिय ज्ञान के अतिरिक्त 'अतीन्द्रिय ज्ञान' का होना भी वह स्वीकार करता है। जहां ऐन्द्रिय ज्ञान में आत्मा वस्तुओं को इन्द्रिय और मन की सहायता से जानती है, वहां अतीन्द्रिय-ज्ञान में बिना इनकी सहायता से अपने आप ज्ञेय वस्तु को जान लेती है। जैन दर्शन में ज्ञान के पांच भेद बताये गये है। उनमें से १. फिलोसोफी एण्ड दी फिजिस्टिस, प्रिफेस, पृ० १० । २. उपयोगलक्षणो जीव: । चेतनाव्यापार उपयोगः ।।
___ -श्री जैन सिद्धांत दीपिका, २-१, २। ३. 'दर्शन' शब्द जैन ज्ञान-मीमांसा का पारिभाषिक शब्द है। इसका अर्थ है-वस्तु (द्रव्य) के ___सामान्य गुणों का अवबोध। यह सामान्यतया प्रयुक्त 'दर्शन' शब्द से नितान्त भिन्न है। ४. (१) मतिज्ञान-इन्द्रिय, मन और बुद्धि की सहायता से होने वाला। (२) श्रुतज्ञान-स्व और पर का अवबोध कराने में समर्थ मतिज्ञान ।
अवधिज्ञान-बाह्य साधनों की अपेक्षा के बिना केवल आत्मा के द्वारा ही होने वाला
दृश्य पदार्थों का ज्ञान। (४) मन:पर्यवज्ञान-केवल आत्मा के द्वारा ही होने वाला संज्ञी प्राणियों के मनोभावों का
ज्ञान। केवलज्ञान-केवल आत्मा के द्वारा ही होने वाला समस्त द्रव्यों व पर्यायों का साक्षात्कार। (इनके विस्तृत विवेचन के लिए देखें, श्री जैन सिद्धान्त दीपिका प्रकाश दूसरा तथा भिक्षुन्यायकर्णिका, विभाग ५)
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