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________________ २५२ आपेक्षिकता के सिद्धान्त का दार्शनिक पक्ष आपेक्षिकता के सिद्धान्त में 'आकाश और काल' के सम्बन्ध में जो विचार दिये गए हैं, उसके दार्शनिक पक्ष के विषय में वैज्ञानिकों के अभिमतों का अब हम अवलोकन करें । आकाश, काल और आकाश - काल की चतुर्वैमितिक सततता की वास्तविकता कहां तक वस्तु-सापेक्ष है और कहां तक ज्ञाता - सापेक्ष, इसके विषय में सभी वैज्ञानिक एकमत नहीं हैं । जैन दर्शन और विज्ञान I डा. अल्बर्ट आइन्स्टीन के अभिमतानुसार “जिस प्रकार रंग, आकार अथवा परिणाम हमारी चेतना से उत्पन्न विचार हैं, उसी प्रकार आकाश और काल भी हमारी आन्तरिक कल्पना के ही रूप हैं। जिन वस्तुओं को हम आकाश में देखते हैं, उनके 'क्रम' के अतिरिक्त आकाश की कोई वस्तु - सापेक्ष वास्तविकता नहीं है । इसी प्रकार जिन घटनाओं के द्वारा हम काल को मापते हैं, उन घटनाओं के 'क्रम' के अतिरिक्त काल का कोई स्वतन्त्र अस्तित्व नहीं है ।" 'आकाश' और 'काल' का स्वतन्त्र वस्तु-र -सापेक्ष अस्तित्व न होने पर भी, 'आकाश-काल की संयुक्त चतुर्वैमितिक सततता’ वस्तु-सापेक्ष वास्तविकता का प्रतीक है, ऐसा माना गया है। जब इस सततता का 'आकाश' और 'काल' के रूप में पृथक्करण किया जाता है, तब ये भेद ज्ञाता-र -सापेक्ष होते हैं, किन्तु जब वे चतुर्वैमितिक सततता के रूप में जुड़ते हैं, तब उसके द्वारा हमें वस्तु- सापेक्ष विश्व का ज्ञान होता है। इस तथ्य का स्पष्ट निरूपण सर जेम्स जीन्स के शब्दों में मिलता है। “हम समग्र प्रकृति को इस ढांचे (चतुर्वैमितिक सततता) में व्यक्त कर सकते हैं, इसलिए यह वस्तु- सापेक्ष वास्तविकता का प्रतिनिधित्व करती है । किन्तु 'आकाश' और 'काल ९ में इसका विभागीकरण वस्तु- सापेक्ष नहीं है - वह तो केवल ज्ञाता - सापेक्ष ही है । ........... आपेक्षिकता के सिद्धांत का मूल तत्त्व यह है कि सततता के आकाश और काल के विभागीकरण के विषय प्रकृति कुछ नहीं जानती।” इन वैज्ञानिकों के अभिमत में 'आकाश' एक संदर्भ का ढांचा' है। जिस प्रकार विषुवद् वृत्त (Equator), ग्रीनिच याम्योत्तर (Greenwhich meridian) उत्तरीध्रुव (North pole ) आदि काल्पनिक हैं; उसी प्रकार 'आकाश' और 'काल' भी काल्पनिक है । कुछ एक वैज्ञानिक इस निरूपण को स्वीकार नहीं करते । यद्यपि 'आकाश और काल की संयुक्त चतुर्वैमितिक सततता' के भौतिक पहलू के विषय में वे भिन्न मत नहीं रखते, फिर भी इन तत्त्वों का - आकाश और काल का केवल ज्ञाता-सापेक्ष अस्तित्व ही है, यह अभिप्राय उनको मान्य नहीं है। हंस राइशनबाख ने अपनी पुस्तक ( आकाश और काल का दर्शन) में 'आपेक्षिकता के सिद्धान्त' के भौतिक पक्ष की चर्चा के साथ-साथ दार्शनिक पक्ष की चर्चा भी की है। इसमें राइशनबाख ने आकाश और काल का वस्तु- सापेक्ष अस्तित्व गणित और तर्क - शास्त्र Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003127
Book TitleJain Darshan aur Vigyan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMahendramuni, Jethalal S Zaveri
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year2008
Total Pages358
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari, Philosophy, & Science
File Size15 MB
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