________________
जैन दर्शन और विज्ञान में अमूर्त अचेतन विश्व-मीमांसा
२५१ चलती है। इन परिवर्तनों का आधार गतिमान् निकाय का वेग है। वेग के अनुपात में ये परिवर्तन होते हैं ज्यों-ज्यों वेग बढ़ता है, त्यों-त्यों घड़ी की चाल अधिक शिथिल होती जाती है। यहां तक कि वेग प्रकाश के वेग के समान हो जाए (यह केवल कल्पना की जा रही है), तो घड़ी ठप्प हो जाएगी। इसी प्रकार नापने वाली छड़ की लम्बाई भी घटती-घटती, अन्तिम दशा में 'शून्य' हो जाएगी अर्थात् छड़ की लम्बाई रहेगी ही नहीं। इसलिए प्रकाश के वेग को पाना अशक्य है, यह मन्तव्य सिद्ध हो जाता है।
आइन्स्टीन ने बताया कि प्रत्येक वस्तु का जड़त्व उसकी संहति पर आधारित है। इस जड़त्व के कारण आकाश में एक 'गुरुत्व-क्षेत्र' (Gravitational Field) की उत्पत्ति होती है। यह क्षेत्र पदार्थ की गति के क्षेत्र को निर्धारित करता है। इस प्रकार के क्षेत्र की भूमिति का निर्धारण पदार्थ की ‘संहति' और वग' से होता है जिसको आइन्स्टीन ने 'गाणितिक समीकरण' द्वारा व्यक्त किया है। प्रत्येक पदार्थ अपने आस-पास के आकाश में जिस गुरुत्व-क्षेत्र की उत्पत्ति करता है, वह 'वक्र' है! यथार्थ शब्दावली में-‘पदार्थ की संहति आकाश-काल की चतुर्वैमितिक सततता में वक्रता लाती है।' पदार्थ की गति उस दिशा में होती है, जिस दिशा में आकाश वक्र बनता है। इसको स्पष्ट करने के लिए यह उदाहरण दिया जा सकता है जैसे एक नतोदर कमरे के बीच हम एक तकिया रखे दें और फिर वहां बैठकर चार गोलियों को कमरे की जमीन पर चार दिशाओं में फेंके। यह स्वाभाविक है कि उस कमरे की नतोदरता के कारण चारों गोलियां उस तकिए से आकर टकराएंगी। अब, यदि किसी व्यक्ति को कमरे की नतोदरता का पता न हो, तो वह मानेगा कि तकिए में आकर्षण-बल है। किन्तु यह भ्रम होगा। वस्तुत: तो गोलियों का तकिए से टकराने का कारण कमरे की नतोदरता है। ऐसे ही सेव को नीचे गिरते देख न्यूटन ने पृथ्वी के आकर्षण-बल को उसका कारण माना था। किन्तु आइन्स्टीन ने बताया कि 'आकाश की वक्रता' ही इसका सही कारण है। क्योंकि, सेव 'आकाश' में जो वक्रता उत्पन्न करता है, उससे मानो आकाश नतोदर बन जाता है और सेव उस दिशा में गिरता है, जिस दिशा में आकाश की नतोदरता अत्यधिक होती है।
'आपेक्षिकता के सिद्धांत' में सबसे अधिक ध्यान देने योग्य बात यह है कि जहां न्यूटन के वैज्ञानिक सिद्धांतों में आकाश, काल और भौतिक पदार्थ, सभी एक दूसरे से स्वतंत्र थे, वहां आइन्स्टीन के सिद्धांत में ये तीनों एक-दूसरे से सम्बन्धित हो गए हैं। विश्व 'आकाश-काल की संयुक्त चतुर्वैमितिक सततता' बन गया है और उसके गुण-धर्म उसमें समाहित भौतिक पदार्थ पर आधारित हो गए हैं। भौतिक-पदार्थों की गति एवं स्थिति का सीधा प्रभाव आकाश-काल की सततता पर पड़ता है।
Jain Education International
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org