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जैन दर्शन और विज्ञान अपेक्षा से-असंख्यात है, क्योंकि लोकाकाश के असंख्यात प्रदेश हैं और प्रत्येक प्रदेश पर एक-एक कालाणु स्थित है।
ये कालाणु एक-दूसरे से स्वतन्त्र हैं; इसीलिए काल द्रव्य अस्तिकाय नहीं बनता। कालाणु-रूप नैश्चयिक काल 'वर्तना' लक्षण के द्वारा जाना जाता है। प्रत्येक द्रव्य के समय-समय में होने वाले परिणमनों में उपादान कारण तो वे स्वयं ही होते हैं। किन्तु उन परिणमनों में निमित्त रूप से सहायक कालाणु होते हैं और उनकी इस सहकारिता को 'वर्तना' कहते हैं। कुछ एक आचार्यों के अनुसार द्रव्यों में होने वाले पर्याय-रूप परिवर्तनों में भी प्रति समय जो द्रव्य के धौव्य की अनुभूति होती है, वह वर्तना है। इस वर्तना लक्षण का धारक जो कालाण द्रव्य है, वह नैश्चयिक काल है। तात्पर्य यही है कि कालाणु के निमित्त से द्रव्यों में परिवर्तन (पर्याय) होता है और साथ-साथ उनके अस्तित्व की भी ध्रुव्रता बनी रहती है। कालाणु स्वयं भी उत्पत्ति, विनाश और धौव्य-रूप त्रिपुटी से युक्त माना गया हैं वर्तमान समय' की उत्पत्ति होती है, अतीत समय का विनाश और इन दोनों के आधारभूत कालाणु ध्रुव रह जाते हैं। इस प्रकार जो द्रव्य की परिभाषा है, वह कालाणु के लिए लागू होती है और परिणामस्वरूप कालाणु वास्तविक द्रव्य माना गया है।
द्रव्यों में नवीन और प्राचीन आदि पर्यायों का समय. घडी. महत आदि रूप स्थिति को 'व्यावहारिक काल' की संज्ञा दी गई है। अर्थात् द्रव्य की पर्याय से सम्बन्ध रखने वाली जो समय, घटिका आदि रूप स्थिति है, वह स्थिति ही - व्यवहार काल' संज्ञा की धारक होती है, किन्तु जो द्रव्य की पर्याय है, वह व्यवहार काल' नहीं है। यह व्यावहारिक काल परिणाम, क्रिया, परत्व, अपरत्व, आदि लक्षणों से जाना जाता है; व्यावहारिक काल आदि और अन्त सहित होता है, जबकि नैश्चयिक काल (कालाणु) शाश्वत है-आदि-अन्त रहित है। व्यावहारिक काल स्वयं द्रव्य नहीं है।
इस प्रकार नैश्चयिक काल (जो स्वतन्त्र द्रव्य है) के निमित्त से अन्य द्रव्यों में पर्यायरूप परिवर्तन होता है और इन पर्यायों की स्थिति से व्यावहारिक काल' जाना जाता है।
अस्तु, श्वेताम्बर-परम्परा में नैश्चयिक काल को केवल जीव और अजीव की पर्याय रूप माना गया है। दिगम्बर-परम्परा में नैश्चयिक काल को वस्तु-सापेक्ष स्वतन्त्र वास्तविकता के रूप में स्वीकार किया गया है। वैज्ञानिक दृष्टिकोण : आपेक्षिकता के सिद्धान्त से पूर्व
आइन्स्टीन के आपेक्षिकता के सिद्धांत (Theory of Relativity) से पूर्व वैज्ञानिक जगत् में 'आकाश और काल' सम्बन्धी एक सर्वमान्य सिद्धांत था, जो कि सर
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