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जैन दर्शन और विज्ञान की खोज स्थूलतत्त्व की खोज है, सामने दिखने वाले पदार्थ की खोज है। हम केवल पर्याय या परिवर्तन पर अटके न रहें, मूल द्रव्य की खोज में आगे बढ़ते चले जाएं, इसके सिवाय कोई गंतव्य नहीं है। समाधान है अनेकान्त .
जैन समाज को विरासत में जो एक महान् दर्शन मिला है, जगत् को देखने का एक सम्यक् और व्यापक दृष्टिकोण मिला है। यदि उसका सम्यक् प्रयोग किया जाए तो शायद अनेकांतवाद पूरे संसार को एक नया दृष्टिकोण और एक नया दर्शन दे सकता है। अनेकांत का यह दृष्टिकोण अनेक मिथ्या अभिनिवेशों, आग्रहों को मिटाने
और एक सामंजस्यपूर्ण समाज की संरचना करने में बहुत सहयोगी बन सकता है, उपयोगी हो सकता है।
अभ्यास १. नियमवाद से आप क्या समझते हैं? जन्म, मृत्यु और रोग के संदर्भ में
नियमवाद की व्याख्या करें। २. क्या अमीरी और गरीबी के लिए अपने कर्म ही जिम्मेवार हैं? अपने उत्तर
को सकारण स्पष्ट करें। ३. ईश्वरवाद और कर्मवाद में क्या अन्तर है? ४. जगत् (सृष्टि) की उत्पत्ति को कार्य-कारणवाद के द्वारा जैन दर्शन के
आधार पर समझाइए। ५. द्रव्यार्थिक नय और पर्यायार्थिक नय के आधार पर अनेकांतवाद के हार्द को
स्पष्ट करें। ६. जैन दर्शन और विज्ञान के क्षेत्र में किए गए सत्य-मीमांसा के प्रयत्नों की
तुलना करें।
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