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________________ जैन दर्शन और विज्ञान : सत्य की मीमांसा २३१ सामने नहीं है, उसको अस्वीकार कर देता है। यह बहुत सीधा मार्ग है। जो सामने था, उसको व्याकृत कर दिया गया और जो सामने नहीं था उसको अव्याकृत कर दिया गया। यह पयार्यवादी दर्शन है। मनुष्य का एक पर्याय है किन्तु क्या वह पर्याय ही है? पर्यायवाद के आधार पर पहले और पीछे की बात नहीं सोची जा सकती, केवल वर्तमान की बात सोची जा सकती है। मनुष्य पर्याय है। उससे पहले क्या था और बाद में क्या होमा, पर्यायवाद के आधार पर इसका निर्धारण नहीं किया जा सकता। जो व्यक्ति अभी है, वह बाद में क्या होगा और वह पहले क्या था, यह पर्यायवादी दृष्टिकोण में नहीं सोचा जा सकता। दो दृष्टिकोण एक दर्शन का दृष्टिकोण है-जो दृश्य है, वह सचाई नहीं है। उस दर्शन का स्वर इस रूप प्रकट हुआ-ब्रह्म सत्यं जगत् मिथ्या । ब्रह्म सत्य है और यह जगत् मिथ्या है। जो दिख रहा है, वह असार है, मिथ्या है। दूसरे दर्शन का दृष्टिकोण है-प्रत्येक पर्याय वर्तमान है, क्षणिक है। समाप्त होने के बाद कुछ भी नहीं होता। यह सिद्धांत पर्याय के आधार पर चलता है। जितने पर्याय हैं, वे सब मिथ्या हैं। एक दृष्टि से विचार करें तो पर्याय मिथ्या है, यह कहना भी असंगत नहीं है। पर्याय को मिथ्या कहा जा सकता है। जो अभी है वह बाद में नहीं भी हो सकता है। उसे मिथ्या, झूठ माना या धोखा मान लें तो कोई अस्वाभाविक बात नहीं लगती। हमारे सामने दो दृष्टिकोण हैं। एक दृष्टिकोण पर्याय को सत्य बतला रहा है और दूसरा दृष्टिकोण पर्याय को मिथ्या बतला रहा है। एक ओर जगत् मिथ्या और ब्रह्म सत्यं का घोष है तो दूसरी ओर जगत् सत्य और ब्रह्म अव्याकृत का उद्घोष है। ब्रह्म का कोई पता नहीं है, आत्मा का कोई पता नहीं है, जो दृश्य नहीं है, वह सत्य नहीं है। जो दृश्य है, वह सत्य है। पर्याय दृश्य है, द्रव्य दृश्य नहीं है। ज्ञेय तत्त्व दो हैं द्रव्य और पर्याय-इन दो आधार पर सारे विचारों का विकास हुआ है, सारे दर्शनों का विकास हुआ है। जितने भी दर्शन हैं वे या तो द्रव्यवादी हैं या पर्यायवादी। द्रव्यवादी दर्शन द्रव्य की व्याख्या कर रहे हैं, नित्य और शाश्वत की व्याख्या कर रहे हैं। पर्यायवादी दर्शन अनित्यवादी दर्शन है। तीसरा कोई दर्शन नहीं है। द्रव्यवादी दर्शनों ने द्रव्य की व्याख्या की और प्रत्येक द्रव्य को कूटस्थ नित्य बताया है। द्रव्य नित्य है। नित्य ही सत्य है, जो अनित्य है, वह सत्य नहीं है। एक सूत्र बन गया-शाश्वत सत्य और अशाश्वत मिथ्या। पर्यायवादी दर्शनों ने पर्याय की व्याख्या की। उनके लिए परिवर्तन सत्य है और जो नहीं बदलता है, वह असत्य होता है। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003127
Book TitleJain Darshan aur Vigyan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMahendramuni, Jethalal S Zaveri
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year2008
Total Pages358
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari, Philosophy, & Science
File Size15 MB
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