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जैन दर्शन और विज्ञान
किया है। इनमें ईश्वर-कर्तृत्व स्वीकार करने की कोई अपेक्षा नहीं है। सूक्ष्म से स्थूल बनने की प्रक्रिया जीव और पुद्गल के संयोग से स्वाभाविक रूप से स्वत: चलती है, चल रही है ।
सारा दृश्य जगत् जीव शरीर का जगत् है । एक कपड़ा वनस्पतिकायिक जीव का शरीर है। एक पत्थर पृथ्वीकायिक जीव का शरीर है। पानी, जो प्यास बुझाता है, अप्कायिक जीव का शरीर है। आग अग्नि - कायिक जीव का शरीर है । हवा चल रही है, स्पर्श के द्वारा उसका बोध होता है, वह वायुकायिक जीवों का शरीर है । मनुष्य सकायिक जीवों का शरीर है । इस जगत् का प्रत्येक दृश्य पदार्थ जीव का शरीर है ।
दृश्य जगत् के दो विकल्प बनते हैं- जीवित शरीर और जीवमुक्त शरीर । जितना दृश्य जगत् है, जो दिखाई दे रहा है, वह जीवयुक्त या जीवमुक्त शरीर है । प्रत्येक व्यक्ति जीवित शरीर को देखता है अथवा मृत शरीर को । दृश्य जगत् के ये दो ही विकल्प हैं । उसका तीसरा कोई विकल्प नहीं है । जैन दर्शन के दो प्रसिद्ध पारिभाषिक शब्द हैं- सचित्त और अचित्त । जिसमें जीवन विद्यमान हो, वह सचित्त शरीर है। जिसका जीव चला गया, जो मृत हो गया, वह अचित्त शरीर वाला होता
है ।
यह नियम अत्यन्त व्यापक है कि जो दृश्य जगत् है, स्थूल जगत् है, वह सारा का सारा जीव का शरीर है । जीव के द्वारा उसका स्थूलीकरण हुआ है । (४) अनेकान्तवाद
हम पर्याय को जानते हैं, द्रव्य को नहीं जानते । हमारा सारा दृष्टिकोण पर्यायवाची है । हम मनुष्य को जानते हैं, आत्मा को नहीं जानते। हम पशु को जानते हैं आत्मा को नहीं जानते। हम कीड़े-मकोड़े को जानते हैं, आत्मा को नहीं जानते । हम पेड़-पौधो को जानते हैं, आत्मा को नहीं जानते। पेड़-पौधे, कीड़े-मकोड़े, गाय-भैंस और आदमी मूल वस्तु नहीं हैं, मूल द्रव्य नहीं हैं ये सब पर्याय हैं। मूल द्रव्य सदा पर्दे के पीछे रहता है । जो सामने आता है, वह उसका एक कण या एक पर्याय होता है । हम पर्याय को देखते हैं, द्रव्य को नहीं देखते। इसीलिए हमारा आग्रह पर्याय में आबद्ध हो जाता है ।
सरल है पर्याय का दर्शन
पर्याय का दर्शन बहुत सरल है। इसीलिए पर्यायवादी दर्शन बहुत वैज्ञानिक दर्शन लगता है | पर्यायवादी दर्शन जो सामने है, उसका निरूपण करता है और जो
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