________________
जैन दर्शन और विज्ञान : सत्य की मीमांसा
२२९
है तो आत्मा भी अमर है। आत्मा और परमाणु - दोनों अमर हैं, दोनों मरणधर्मा हैं । इन दोनों में परिवर्तन होता भी है, परिवर्तन नहीं भी होता । जैन दर्शन में कार्यकारण को सर्वत्र नियमित नहीं किया गया। प्रत्येक कार्य के पीछे कारण होना चाहिए, यह सिद्धांत जैन दर्शन में सम्मत नहीं है। जहां केवल सादि परिणमन होता है, वहां यह सिद्धांत लागू हो सकता है । अन्यत्र इसकी कोई अपेक्षा नहीं है।
जगत् : दार्शनिक जगत् का अहं प्रश्न
दार्शनिक जगत् का एक अहं प्रश्न है - यह जगत् क्या है? जिस जगत् में हम जी रहे हैं वह क्या है? इसका बहुत सीधा उत्तर है - अनादि और सादि परिणमन का योग, इसका नाम है जगत् । कुछ अनादि परिणमन हैं, वे सूक्ष्म हैं, तत्त्व हैं । जो मूल तत्त्व हैं, सूक्ष्म हैं वे अदृश्य रूप में काम आ रहे हैं। जीव सूक्ष्म तत्त्व है, परमाणु सूक्ष्म तत्त्व है। धर्मास्तिकाय, अधर्मास्तिकाय, आकाशास्तिकाय और जीवास्तिकाय - ये अमूर्त हैं । पुद्गल मूर्त हैं ।
1
जगत् को दो भागों में बांटा गया - दृश्य जगत् और अदृश्य जगत् । चार तत्त्वों का जगत् अदृश्य जगत् है, काल भी अदृश्य है। केवल पुद्गल का जगत् दृश्य बनता है। किन्तु सभी पुद्गल हमारे लिए दृश्य नहीं बनते। दो प्रकार की परिणतियां होती हैं-एक सूक्ष्म परिणति और दूसरी स्थूल परिणति । जिन पुद्गलों की परिणति स्थूल बन जाती है, उन्हें आंख के द्वारा देखा जा सकता । जिनकी परिणति सूक्ष्म रहती है, उन्हें आंख के द्वारा नहीं देखा जा सकता । जैसे-जैसे शक्ति का विकास होता है, अदृश्य दृश्य बनते चले जाते हैं । चर्मचक्षुओं से जिन वस्तुओं को नहीं देखा जा सकता, उन्हें वर्तमान में माइक्रोस्कोप के द्वारा देखा जा सकता है, सूक्ष्म यान्त्रिक उपकरणों के द्वारा देखा जा सकता है। हमारी इन्द्रियों की पटुता यन्त्र के माध्यम से और अधिक बढ़ जाती है। एक अतिशयज्ञानी, अवधि - ज्ञानी और मनः : पर्यवज्ञानी सूक्ष्म पुद्गलों को देख सकता है। अमूर्त पदार्थ को सर्वज्ञ के सिवाय कोई नहीं देख सकता। अवधि, मन: पर्यव, प्रातिभ जातिस्मरण आदि ज्ञान से सम्पन्न व्यक्ति सूक्ष्म पुद्गलों को देख सकते हैं । जो पुद्गल चर्मचक्षु के विषय नहीं बनते, वे अतीन्द्रिय ज्ञान का विषय बन जाते हैं ।
दृश्य जगत् क्या है?
सारा दृश्य जगत् दो भागों में बंट जाते हैं-चक्षु से देखा जाने वाला दृश्य जगत् और अतिशय ज्ञान के द्वारा देखा जाने वाला दृश्य जगत् । अदृश्य दृश्य कैसे बनता है? सूक्ष्म स्थूल परिणति कैसे होती है? सूक्ष्म को स्थूल कौन करता है? ये प्रश्न भी अत्यन्त महत्त्वपूर्ण हैं । जैन दर्शन ने इन पर बहुत सूक्ष्मता से विचार
Jain Education International
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org