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________________ दर्शन और विज्ञान ९ है कि वस्तु-सापेक्ष वास्तविकता का अस्तित्व होने पर भी हमारा ( मनुष्य का ) ज्ञान केवल ज्ञाता - सापेक्ष वास्तविकता तक सीमित है । इस अभिप्राय को स्वीकार करने वाले वैज्ञानिकों में डा. अलबर्ट आईन्सटीन, सर ए. एस. एडिंग्टन, सर जेम्स जीन्स, हर्मन वाइल, अर्नस्ट माख, पोईनकेर आदि हैं और दार्शनिकों में प्लुतो (Plato), लाइबनीज, लोक, बर्कले, ह्यूम, काण्ट, हेगल आदि के नाम उल्लेखनीय हैं। २. वास्तविकतावाद (Realism) - - इसके अनुसार विश्व वस्तुसापेक्ष वास्तविकता है । विश्व-स्थित पदार्थ ज्ञाता की अपेक्षा बिना भी वास्तविक अस्तित्व रखते हैं। इस अभिप्राय को स्वीकार करने वाले वैज्ञानिकों में न्यूटन, बोहर (Bohr), हाइजनबर्ग, व्हीट्टाकर, राइशनबाख, सी. इ. एम. जोड, सर ओलिवर लोज और भौतिकवादी सोवियत वैज्ञानिक हैं तथा दार्शनिकों में डेमोक्रिटस और अणुवादी यूनानी दार्शनिक, अरस्तु, ईसाई पाण्डित्यवादी (Scholastic) दार्शनिक, रेने डेकार्टस्, बर्ट्रेण्ड रसल, हेन्री मार्गेनौ आदि के नाम उल्लेखनीय हैं। (क) वैज्ञानिकों का आदर्शवाद और जैन दर्शन विज्ञान के सहज दार्शनिक स्वभाव की चर्चा में यह बताया गया था कि 'विज्ञान का एक सुनिश्चत दर्शन है । इससे यही तात्पर्य था विज्ञान मनुष्य के ज्ञान की धारा होने के कारण 'दर्शन' से अछूता नहीं रह सकता । किन्तु वैज्ञानिकों के द्वारा प्रतिपादित दार्शनिक धाराएं विज्ञान का दर्शन है, ऐसा नहीं माना जा सकता । जैसे मार्गेनौ के शब्दों में हमने देखा कि वास्तविकता के विषय में वैज्ञानिकों का भिन्न-भिन्न मत होना आश्चर्यजनक नहीं है । इस अभिप्राय के आधार पर मार्गेनौ ने वैज्ञानिकों को भिन्न-भिन्न दार्शनिक प्रकारों में विभक्त किया है, जिनमें प्लांक और आइन्सटीन को विवेचनात्मक वास्तविकतावादी (क्रिटिकल रियलिस्ट्स) एडिंग्टन और जीन्स को आदर्शवादी तथा बोहर और हाईजनबर्ग को विधानवादी अथवा प्रत्यक्षवादी (पॉजिटिबीस्ट ) बताया है । मार्गेनौ तो यहां तक मानते है कि नितांत आत्मवादी (सोलिप्सिष्ट) भी कुछ एक सीमाओं में वैज्ञानिक बन सकता है। इस प्रकार यह स्पष्ट है कि वैज्ञानिक दर्शन और वैज्ञानिकों का दर्शन एक ही नहीं है । एडिंग्टन ने विज्ञान के दर्शन का जिस रूप में प्रतिपादन किया है, उसे हम एडिंग्टन का दर्शन कह सकते हैं, परन्तु विज्ञान का दर्शन नहीं कह सकते । इसी प्रकार अन्य १. देखें, पृ० ६ । २. देखें, पृ० ८, टिप्पण ३ । ३. दी नेचर ऑफ फिजिकल रियलिटी, पृ० १२ । ४. देखें, वही, पृ० १२; नितान्त आत्मवादी में सामान्यतया 'स्व' (आत्मा) के अतिरिक्त विश्व की वास्तविकता का निषेध किया गया है। ज्ञाता-सापेक्ष आदर्शवाद का ऐकान्तिक रूप नितान्त आत्मवाद' है । Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003127
Book TitleJain Darshan aur Vigyan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMahendramuni, Jethalal S Zaveri
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year2008
Total Pages358
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari, Philosophy, & Science
File Size15 MB
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