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जैन दर्शन और विज्ञान : सत्य की मीमांसा मूड क्यों बिगड़ता है?
मूड बिगड़ने का एक ही कारण नहीं है। उसका एक नियम है-काल। प्रात:काल मूड कम बिगड़ेगा और गर्मी का समय है तो मूड जल्दी बिगड़ जाएगा। व्यक्ति का अलग-अलग समय पर अलग-अलग मूड होता है। पर जिस सिद्धांत का विकास हुआ है, उसे स्वर-विज्ञान में स्वरोदयशास्त्र में बहुत स्थान दिया गया है। किस समय किस प्रकार का भाव भीतर चलता है-इस आधार पर सारे कार्यों का निर्णय करना चाहिए। अनेक आदमी जानते हैं कि अभी लाभ की दुघड़िया है, शुभ की दुघड़िया है, अमृत का दुघड़िया है। ये सारे व्यक्ति पर प्रभाव डालते हैं। एक समय होता है, व्यक्ति का भाव बहुत शांत रहता है, प्रसन्न रहता है, मूड बहुत अच्छा रहता है। दूसरा समय आया, उसी व्यक्ति का उसी दिन में भाव बिगड़ जाता है, मूड बिगड़ जाता है। वह बिलकुल बदला हुआ-सा लगता है। यह वही व्यक्ति है, ऐसा विकास नहीं होता। एक व्यक्ति के भाव कितने बदल जाते है, उसके पर्याय कितने बदल जाते हैं, इसे नियमवाद के आधार पर समझा जाता है। नियमन का सिद्धांत है-नियमवाद
__ जीवन का संदर्भ में नियमवाद का यह संक्षिप्त अनुशीलन है। नियमों का जैन-साहित्य में बहुत विकास हुआ है। उसमें बहुत सारे नियम ग्रथित हैं। अगर सारे नियमों का संकलन किया जाए तो पूरा एक नियमशास्त्र बन जाए, नियमों का एक महाग्रंथ बन जाए, उसके आधार पर नियमों की समग्र व्याख्या की जा सकती है। जैन-दर्शन नियंता को नहीं मानता, ईश्वर को नहीं मानता। वह नियमन के सिद्धांत को नियमवाद के सन्दर्भ में प्रस्तुत करता है। वह मानता हैं-हर व्यक्ति
और पदार्थ के अपने-अपने नियम हैं और वे नियम अपना काम करते हैं। ईश्वरवादी यह कहकर छुट्टी पा सकता है कि भगवान् की ऐसी मर्जी थी, ऐसी इच्छा थी, अत: ऐसा हो गया पर एक अनीश्वरवादी यह कहकर छुट्टी नहीं पा सकता। उसके सामने बड़ा जटिल मार्ग है। ईश्वरवाद का मार्ग बहुत सरल मार्ग है। ईश्वर का अस्वीकार बड़ा जटिल कार्य है। इससे व्यक्ति के सामने स्वयं निर्णय करने का प्रश्न आता है, नियमों की खोज का प्रश्न आता है। इस प्रश्न के संदर्भ में जैन-दर्शन नियमों की खोज की है, वह खोज बहुत उपयोगी है, उसका ज्ञान होना अत्यन्त आवश्यक है। आधुनिक विज्ञान में नियमवाद
आधुनिक विज्ञान का सारा विकास नियमवाद के आधार पर हुआ है। भौतिक विज्ञान में न्यूटन से लेकर आइंस्टीन तक उन मौलिक नियमों को खोजने
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