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________________ २१६ जैन दर्शन और विज्ञान स्वाध्याय का प्रारम्भ बहुत फलदायी होता है और बहुत ग्राह्य बनता है। प्रभाव सौरमंडल के विकिरणों का यह काल का प्रभाव है। उसके नियम गरीबी और अमीरी के साथ भी जुड़े हुए है। अमुक प्रकार का सौर-मंडल का ब्रह्मण्डीय विकिरण अमुक प्रकार के व्यक्ति को प्रभावित करता है तो गरीबी की स्थिति बन जाती है। बहुत लोग कहते हैं-हमने बहुत प्रयत्न किया, व्यावसायिक बुद्धि और पुरुषार्थ का भी बहुत उपयोग किया, बहुत चेष्टाएं की, प्रयत्न किए, अनेक लोगों से सम्बन्ध स्थापित किए किन्तु अब तक सफलता नहीं मिली, गरीबी बनी की बनी रही। समाज में ऐसी घटनाएं बहुत होती हैं और इनका कारण हो सकता है-कोई काल विपरीत चल रहा है, सौर-मंडल के विकिरण विपरीत काम कर रहे हैं। जब कोई अवसर आता है, वे व्यक्ति के कार्य की निष्पत्ति में बाधक बन जाते हैं। एक नियम है-पुरुषार्थ । श्रम-हीनता, श्रमविमुखता गरीबी को बढ़ाती है और श्रम की प्रचुरता गरीबी को कम करती है, गरीबी को मिटाती है। एक नियम है-कर्म। जिस व्यक्ति के असातवेदनीय कर्म का उदय अति तीव्र होता है, उसकी गरीबी को मिटाना मुश्किल बन जाता है। इस प्रकार अनेक नियमों को जानकर ही इस प्रश्न की समीक्षा की जा सकती है। (ई) संदर्भ भाव का जीवन का एक संदर्भ है-भाव । एक दिन में मनुष्य को अनेक भावों का सामना करना होता है। क्रोध, अहंकार, लोभ आदि-आदि मनोभाव बदलते रहते हैं। एक आदमी ने कहा-मुझे दिन में गुस्सा कम आता है और रात को ज्यादा आता है। किसी को अमुक व्यक्ति पर गुस्सा ज्यादा आता है, किसी को अमुक स्थिति में गुस्सा ज्यादा आता है, ऐसा क्यों होता है? किसी व्यक्ति को अमुक स्थान में जाने पर गुस्सा आ जाता है। इसका क्या कारण है? इस प्रश्न के संदर्भ में नियमों के समवाय अनुशीलन आवश्यक है। स्थानांग सूत्र में चार कारण बतलाए गए हैं। उनमें पहला कारण है-क्षेत्र। एक क्षेत्र के प्रकपन ऐसे होते हैं, जहां आते ही आदमी के भाव बिगड़ जाते हैं और एक क्षेत्र के प्रकंपन ऐसा होते है, जहां आते ही आदमी के भाव अच्छे हो जाते हैं, गुस्से के भाव शांत हो जाते हैं । नेपाल में भवन बनाते समय मिट्टी का परीक्षण किया जाता है। वहां यह एक शास्त्र-विद्या चल पड़ी है। नेपाल में इस प्रकार के ज्योतिर्विज्ञानी हैं, जो मिट्टी का परीक्षण करते हैं। परीक्षण के बाद बतलाते हैं यहां की मिट्टी के प्रकम्पन किस प्रकार के हैं। वे आपके लिए लाभप्रद होंगे या हानिकारक? क्षेत्र के आधार पर यह पूरा विज्ञान विकसित हुआ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003127
Book TitleJain Darshan aur Vigyan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMahendramuni, Jethalal S Zaveri
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year2008
Total Pages358
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari, Philosophy, & Science
File Size15 MB
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