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________________ जैन दर्शन और विज्ञान : सत्य की मीमांसा २१५ प्रकार का प्रभाव होता है। काल का अर्थ है-सूर्य चन्द्रमा की गति यानी सौर-मंडल की गति और सौर-मंडल के विकिरण। पूरा का पूरा ज्योतिशास्त्र इस आधार पर विकसित हुआ है। ज्योतिशास्त्र बहुत वैज्ञानिक सिद्धांत है। प्रस्तुत प्रसंग में उस ज्योतिष से संबंध नहीं है जिसके द्वारा फलित बताने में बहुत गड़बड़ियां होती हैं। इसका कारण है-भविष्यवाणी करने वाले को पूरे नियम का पता ही नहीं होता। वे एक बात को लेकर भविष्यवाणी कर देते हैं। इसलिए भविष्यवाणी अनेक बार मिथ्या प्रमाणित होती है। जब ज्योतिष के पूरे नियम का पता नहीं होता, तब अनेक मिथ्या धारणाएं बन जाती है और उन धारणाओं के आधार पर ये भविष्यवाणी करने वाले लोगों को बहुत गुमराह कर देते हैं। किसी को बताते हैं-तुम्हारे लड़का पैदा होगा और पांच दिन के बाद लड़की हो जाती है। किसी को बताते हैं तुम्हारा कारखाना बहुत चलेगा और सात दिन बाद दिवाला निकल जाता है। ये सामने आई हुई घटनाएं हैं। ये भविष्यवाणियां व्यक्ति को गुमराह करती हैं। ज्योतिर्विज्ञान : एक नियम ज्योतिर्विज्ञान का अर्थ है-काल-चक्र के आधार पर होने वाली घटनाओं का विश्लेषण और वह बहुत सही निकलता है। कब किस प्रकार के ग्रहों की गति होती हैं। और उस गति के क्या परिणाम आते हैं, यह बिलकुल वैज्ञानिक बात है। इसे गणित ज्योतिष कहा जाता है। कुछ व्यक्ति हस्तरेखा देखकर चार-पांच मोटी-मोटी बातें जान लेते हैं और उसके आधार पर फलित बता देते है। कुण्डली देखते हैं और भविष्यवाणी कर देते हैं। इस पाखण्डवाद ने ज्योतिर्विज्ञान को धूमिल बना दिया, संदेहास्पद बना दिया। वास्तव में ज्योतिर्विज्ञान एक बहुत बड़ा नियम है। कब सूर्य, चन्द्र आदि-आदि ग्रहों की गति और उनके विकिरण किस प्रकार के होते है और कब व्यक्ति उनसे प्रभावित होता है-यह सारा ज्योतिर्विज्ञान से जाना जा सकता है। इन नियमों का विस्तार किया गया ज्योतिर्विज्ञान में । किस महीने में, किस ऋतु में और किस राशि में किस प्रकार का विकिरण होता है और वह व्यक्ति के शरीर को किस प्रकार प्रभावित करता है। यदि हार्ट को पुष्ट करना है तो किस राशि में उसको पुष्ट किया जा सकता है? यदि मस्तिष्क को पुष्ट करना हो तो किस राशि में पुष्ट किया जा सकता है। प्रत्येक अवयव के साथ राशि और ऋतु का चक्र जुड़ा हुआ है। ज्ञान को विकसित करना हो तो कब करना चाहिए। जैन आगमों में अध्ययन के विशेष काल का निर्देश दिया गया है। प्रश्न पूछा गया-स्वाध्याय प्रारम्भ करें तो कब करें। उत्तर दिया गया-पुष्य नक्षत्र में या अमुक-अमुक नक्षत्र में अध्ययन शुरू करें। अमुक दिशा में बैठकर अध्ययन शुरू करें। यह दिशा का निर्देश, काल का निर्देश बहुत सार्थक है। उस समय किया गया Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003127
Book TitleJain Darshan aur Vigyan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMahendramuni, Jethalal S Zaveri
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year2008
Total Pages358
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari, Philosophy, & Science
File Size15 MB
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