________________
२१४
जैन दर्शन और विज्ञान निदान से परे का सच
___ बहुत बार बीमारी की अवस्था के और इस प्रकार की नींद की अवस्था के शारीरिक कारण भी खोजे जाते हैं। किन्तु कुछ भी उपलब्ध नहीं होता। कुछ लोग कहते हैं-डॉक्टरों के द्वारा सारे निदान करा लिये, निदान में बिलकुल बीमारी नहीं आ रही है और मैं बहुत भयंकर बीमारी भुगत रहा हूं। इसका क्या कारण है ? उपकरण नहीं बता पा रहे हैं कि यह व्यक्ति बीमार है और यह व्यक्ति भयंकर दु:ख भोग रहा है। वहां केवल शरीर को ही नियम मानकर सत्य को, वास्तविकता को नहीं खोजा जा सकता। वहां शरीर से आगे खोजना होता है। उस बीमारी का कारण है-असातवेदनीय कर्म। वह कर्म के कारण भुगत रहा है। बीमारी का कोई लक्षण प्रकट नहीं हो रहा है किन्तु असातवेदनीय का प्रबल उदय हो गया इसलिए वह कष्ट को भोग रहा है। यह सत्य की खोज का बहुत व्यापक दृष्टिकोण बनता है। जैन-दर्शन ने इस दृष्टिकोण को बहुत व्यापक बनाया है और इस व्यापक दृष्टिकोण से सत्य की बहुत समीक्षा की है, मीमांसा की है। (द) संदर्भ : अमीर और गरीबी का
जीवन से जुड़ा हुआ एक संदर्भ है-गरीबी और अमीरी। आदमी गरीब क्यों बनता है, आदमी अमीर क्यों बनता है? यह एक आम धारणा है कि जिसने अच्छा कर्म किया था, वह अमीर बन गया जिसने बुरा कर्म किया था वह गरीब बन गया। यह एक सचाई हो सकती है, एक नियम हो सकता है किन्तु इसे व्यापक नियम नहीं कहा जा सकता। अनेक नियम इसमें काम करते हैं। एक नियम है-क्षेत्र । क्षेत्र कर्म के उदय में निमित्त बन सकता है। एक क्षेत्र ऐसा है, जहां पैदा होने वाला आदमी बहुत गरीबी भोगता है और एक क्षेत्र ऐसा है, जहां पैदा होने वाला सहज ही अमीर बन जाता है। हमारे सामने एक घटना है-अरब देशों में जब तक तेल उपलब्ध नहीं हुआ, अमीरी नहीं थी, बहुत गरीबी थी और प्राकृतिक साधन भी बहुत कम थे। न वहां विशेष खेती थी, न कोई और रोजगार के अच्छे साधन थे किन्तु जैसे ही तेल उपलब्ध हुआ, वे देश दुनिया के अमीर देशों में मुख्य बन गए। यह अमीरी किस कर्म के उदय से हुई? एक साथ ऐसा कैसे हुआ? सबके एक साथ शुभ कर्मों का उदय हो गया, ऐसा नहीं माना जा सकता। यदि इस बात की गहराई में जाकर नियमों को खोजा जाए तो इसका नियम उपलब्ध होगा-क्षेत्र । भविष्यवाणी मिथ्या क्यों होती है?
काल का भी एक नियम है। गरीबी और अमीरी में काल भी कारण बनता है। अमुक व्यक्तियों पर या अमुक-अमुक स्थानों पर सौर-विकिरण का अमुक
Jain Education International
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org