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जैन दर्शन और विज्ञान : सत्य की मीमांसा
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नींद नहीं आनी चाहिए, स्वाध्याय के समय में नींद नहीं आनी चाहिए किन्तु नींद आ जाती है। सोते समय नींद आनी चाहिए, किन्तु उस समय बहुत लोगों को घंटों तक नींद नहीं आती। वे बिस्तर पर इधर-उधर करवटें बदलते रहते है । नींद जीने के साथ जुड़ा हुआ एक पहलू है । प्रश्न होता है- नींद का क्या नियम बन है? उसे कौन प्रभावित करता है ? इसका पहला नियम है- काल । काल और नींद का बहुत गहरा सम्बन्ध है। दिन नींद का काल नहीं है। नींद का काल है-रात्रि । दिन में सोना और रात में न सोना-दोनों स्वास्थ्य की दृष्टि से अनुकूल नहीं माने जाते । आयुर्वेद का सिद्धांत है-दिन में नहीं सोना चाहिए या बहुत नहीं सोना चाहिए। केवल गर्मी के दिनों में दिन में सोया जा सकता है, और दिनों में दिन में सोना उपयुक्त नहीं माना जा सकता। काल का नियम हैं नीद के साथ जुड़ा हुआ । सहज नींद रात में जितनी अच्छी आती है, दिन में उतनी अच्छी नहीं आती। यदि आती है तो अधिक आलस्य पैदा कर देती है ।
अपराध भी नींद में
दूसरा नियम है कर्म का । नींद का कर्म के साथ भी सम्बन्ध है । जब दर्शनावरणीय कर्म के परमाणु व्यक्ति को प्रभावित करते हैं, तब व्यक्ति नींद में चला जाता है । एक व्यक्ति बहुत नींद लेता है । उसका निदान नहीं होता । बहुत प्रयत्न करता है, पर नींद आए बिना नहीं रहती । इस स्थिति की समीक्षा करना अपेक्षित है । न आहार का कारण, न कफ की प्रधानता और न वायु की प्रधानता । बिलकुल स्वस्थ है और फिर भी नींद बहुत आती है तो वहां दूसरा नियम खोजना होगा। वह नियम होगा - कर्म । निश्चित ही उस व्यक्ति के दर्शनावरणीय कर्म की अधिकता है । उसका विपाक बहुत होता है, इसलिए वह नींद में चला जाता है। कुछ लोग बहुत सघन निद्रा में चले जाते हैं । इतनी सघन निद्रा, जिस स्त्यानर्धि निद्रा कहा जाता है। जिस नींद में आदमी अकरणीय काम कर लेता है, असंभावित काम कर लेता है और उसे पता ही नहीं चलता। ऐसी होती है स्त्यानर्धि नींद। नींद में उठकर चला जाता है, किलोमीटरों तक चला जाता है, किसी का दरवाजा खोल आता है, चोरी कर आता है, किसी को मार आता है, कहीं से कोई चीज उठाकर ले आता है और वापस आकर सो जाता है । उसे पता ही नहीं चलता कि उसने कुछ किया है। ऐसी घटनाएं (जिसे मनोविज्ञान में Somnambulism कहा जाता है) आज भी कहीं-कहीं मिलती है। समाचार-पत्रों में ऐसे विवरण प्रकाशित होते हैं । इतनी गाढ़ निद्रा के मूल कारण को शरीर में नहीं खोजा जा सकता। इसका कारण है-कर्म ।
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