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जैन दर्शन और विज्ञान होगा और रात्रि में, मध्य रात्रि में वह रोग भयंकर बन जाएगा।
एक नियम है-अवस्था। अवस्था-जनित रोग होता है। अमुक अवस्था में एक प्रकार की बीमारी होगी, पहले वह नहीं होगी। एक नियम है-भाव । अमुक भाव में बीमारी होगी। क्रोध का भाव तीव्र हो गया तो अमुक बीमारी पैदा हो जाएगी। आजकल इस पर बहुत काम हुआ है विज्ञान के क्षेत्र में। किस प्रकार का मनोभाव किस प्रकार की बीमारी मनोदैहिक (Psycho-somatic) रोग को जन्म देता है-इस विषय में बहुत खोज हो रही है। भाव भी इसका एक कारण है, नियम है। कर्म एक नियम है
आयुर्वेद में एक प्रकार का रोग माना गया-कर्मज रोग, जो कर्म से उत्पन्न होता है। कर्म एक नियम है। कुछ बीमारियां ऐसी हैं, जिन्हें कर्मज कहा जा सकता है। असातवेदनीय कर्म के उदय से होने वाला रोग कर्मज कहा जा सकता है। किन्तु सब रोगों को कर्मज माना जाए, यह समीचीन नहीं लगता। रोग आने पर असातवेदनीय का उदय हो जाता है। अप्रिय कर्म का योग होता है, दुःख का संवदेन होता है, यह ठीक बात है किन्तु सब रोग असातवेदनीय के उदय से होते हैं-यह विमर्शनीय है। ऐसा नहीं होना चाहिए। दु:ख का निमित्त होना एक बात है और असातवेदनीय के उदय से पैदा होना बिलकुल दूसरी बात है। कर्म सर्वत्र नियामक नहीं
एक आदमी चल रहा था। ठोकर लगी और पैर में दर्द हो गया। असातवेदनीय के उदय से यह बीमारी आई, ऐसा तो नहीं कहा जा सकता। किन्तु ठोकर लगी, दर्द हुआ और असातवेदनीय कर्म का उदय हो गया, यह कहा जा सकता हैं। रोग का एक नियम हो सकता है-कर्म, किन्तु उसे सर्वत्र नियामक नहीं माना जा सकता। नियमों की समीक्षा किसए बिना शायद पूरी बात समझ में नही आती। क्षेत्र सम्बन्धी रोग होते हैं, काल संबंधी रोग होते हैं। कीटाणुजनित रोग होते है, बहुत सारे रोग संक्रामक होते है। एक संक्रामक बीमारी फैली, हजारों-हजारों आदमी एक साथ बीमार हो गए। वह असातवेदनीय से उत्पन्न रोग नहीं है किन्तु उस रोग ने असातवेदनीय कर्म का उदय ला दिया। यदि समग्र दृष्टि से रोग के बारे में नियमों की समीक्षा की जाए तो एक नया दृष्टिकोण प्रस्तुत हो पाएगा। (स) संदर्भ नींद का
जीवन का एक संदर्भ है-नींद । व्यक्ति के जीवन को नींद बहुत प्रभावित करती है। जब नींद आनी चाहिए, तब बहुत सारे व्यक्तियों को नींद नहीं आती और जब नींद नहीं आनी चाहिए, तब लोगों को नींद आ जाती है। ध्यान के समय में
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