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________________ दर्शन और विज्ञान यह वही 'दर्शन' है, जिसके साथ वे सभी वैज्ञानिक अपनी पद्धति से वाग्बद्ध होते हैं, जो विज्ञान द्वारा स्वीकृत पद्धति को अपना कर चलते हैं। यह दर्शन इनकी उन पद्धतियों में सहज रूप से निहित है, जिनसे वे विज्ञान का विकास करते हैं--कभी-कभी तो वे समझते भी नहीं कि क्यों वे ऐसी पद्धति को व्यवहत करते हैं।. ........ 'आज के अधिकांश वैज्ञानिक इस बात को स्वीकार करते हैं कि प्राचीन दार्शनिक समस्याएं और इनके समाधानों' की चर्चा यदि आधुनिक विज्ञान के सिद्धांतो के आलोक में की जाय तो वह वस्तुत: ही लाभदायक हो सकती है। जैसे कि माने हुए वैज्ञानिक सर एडमण्ड व्हीट्टाकर (Sir Edmund Whittakar) जिन्होंने प्राचीन यूनानी गणितज्ञ युक्लिड (Euclid) से लेकर आधुनिक वैज्ञानिक एडिग्टन तक के विज्ञान के इतिहास पर अधिकारपूर्ण पुस्तक लिखी है, अपनी उस पुस्तक की आदि में लिखते है: १ 'आज भी यह सत्य है कि बहुत सारे महत्त्वपूर्ण दानिक प्रश्नों की चर्चा भौतिक विश्व के सन्दर्भ के बिना करना लाभदायक नहीं हो सकता और भौतिक विज्ञान के निकटभूत में हुए विकास ने कुछ पारंपरिक दर्शन की समस्याओं पर प्रकाश डाला है। इन्हीं समस्याओं में 'आकाश के स्वरूप' का प्रश्न भी है।' प्रकृति की अनेक समस्याओं में से आकाश-तत्त्व' की समस्या भी एक है, जिसको आधुनिक विज्ञान ने नए दृष्टिकोण से हल करने का प्रयत्न किया है। और इस प्राचीन समस्या का यह नया हल अधिकतर ज्ञान मीमांसा पर आधारित है। किन्तु कुछ विचारक आधुनिक विज्ञान के इस दार्शनिक लक्षण को स्वीकार नहीं करते। प्रसिद्ध आधुनिक दार्शनिक और वैज्ञानिक हन्स राइशनबाख (Hans Reichenbach) के शब्दों में यह बात स्पष्ट रूप से प्रकट होती है: २ 'यदि वर्तमान युग के दार्शनिक समकालीन विज्ञान के दार्शनिक लक्षण को स्वीकार नहीं करते हैं--यदि 'आपेक्षिकता का सिद्धांत' (Theory of Relativity) और सेट्स का सिद्धांत' (Theory of Sets) जैसे सिद्धांत को वे 'अदार्शनिक' कहते है और उनको केवल विज्ञान-विशेष के ही अंग मानते हैं--तो यह निर्णय उन दार्शनिकों की आधुनिक वैज्ञानिक विचारों में निहित दार्शनिकता को समझने की असमर्थता को ही व्यक्त करता है।' आगे राइशनवाख लिखते हैं : ३'यह आवश्यक है कि विज्ञान को दार्शनिक दृष्टिकोणों से देखा जायें और उसके तीक्ष्ण उपकरणों से इस परिष्कृत ज्ञान का 'दर्शन' बनाया जाय।' १. फोम युक्लिड टू एडिंग्टन, पृ० १ । २. दी फिलोसोफी ऑक स्पेस एण्ड टाईम, प्रिफेस, पृ० १३ । ३. दी फिलोसोफी आफ स्पेस एण्ड टाईम, प्रिफेस, पृ० १४ । Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003127
Book TitleJain Darshan aur Vigyan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMahendramuni, Jethalal S Zaveri
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year2008
Total Pages358
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari, Philosophy, & Science
File Size15 MB
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