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________________ तुलनात्मक अध्ययन का लाभ दर्शन और विज्ञान के तुलनात्मक अध्ययन से जो लाभ होता है, उसकी एक झांकी स्वयं हाईजनबर्ग के शब्दों में हमें मिलती है। 'वर्तमान चिन्तन में आधुनिक विज्ञान के योग' की चर्चा करते हुए वे लिखते हैं । ' 'विज्ञान के इस आधुनिकतम अध्याय में बहुत स्थानों पर अति प्राचीन वैचारिक समस्याओं की चर्चा की गई है और वह भी एक नए दृष्टिकोण से । सामान्ययतया यह एक माना हुआ सत्य है कि मानव-चिन्तन के इतिहास में जब भी दो विचारधाराओं का मिलन होता है, तब अि सुपरिणामशाली विकास का उद्भव होता है। भले ही उन विचारधाराओं का उद्गम-स्थान मानव- - संस्कृति के भिन्न-भिन्न विभागों में हो, भिन्न-भिन्न काल में हो, भिन्न-भिन्न सांस्कृतिक परिस्थितियों में हो अथवा भिन्न-भिन्न धार्मिक पंरपराओं में हो । प्रत्युत ऐसी विचारधाराएं यदि वस्तुतः परस्पर मिलती हैं - यदि उनमें ऐसा सम्बन्ध है कि जिससे उनका वास्तविक संगम होता है तो यह सहज अनुमान है कि उसके परिणामस्वरूप नवीन और रोचक निष्कर्ष निकल सकते हैं। उदाहरणार्थ, आधुनिक विज्ञान का एक अंश - अणु विज्ञान (Atomic Physics) आज के युग में वस्तुतः भिन्न-भिन्न सांस्कृतिक परंपराओं को स्पर्श करता है।' हाईजनबर्ग ने इस चिन्तन से प्राचीन पारंपरिक दर्शन के और आधुनिक वैज्ञानिक दृष्टिकोणों के तुलनात्मक अध्ययन का मूल्यांकन सहज रूप से फलित होता है । यदि हम आधुनिक विज्ञान के दर्शन से प्रकृति के रहस्यों को उद्घाटित करना चाहते है, तो प्राचीन दर्शनों का दृष्टिकोण इस विषय में क्या रहा है, यह जानना हमारे लिए निःसन्देह उपयोगी होगा । जैन दर्शन और विज्ञान कुछ विचारक आधुनिक विज्ञान के दर्शन को 'वैज्ञानिक दर्शन' नहीं मानते। उनके अभिप्रायानुसार यह नई दार्शनिक धारा केवल कुछ एक वैज्ञानिकों की है । किन्तु 'विज्ञान' का सहज दार्शनिक स्वरूप सुप्रसिद्ध वैज्ञानिक सर ए. एस. एडिंग्टन (Sir A.S.Eddington) के शब्दों में हमें देखने को मिलता है । 'भौतिक विज्ञान का दर्शन' नामक अपनी पुस्तक की भूमिका में वे लिखते है: ' 'यह बहुधा कहा जाता है कि विज्ञान का कोई 'दर्शन' नहीं है केवल कुछ एक वैज्ञानिकों का 'दर्शन' हो सकता है । किन्तु यह ठीक नहीं है । 'वर्तमान भौतिक विज्ञान क्या है और क्या नहीं है?' इसका निर्णय करने वाले अधिकारी विद्वानों के अभिप्राय को यदि हम मान्यता देते हैं, यह मानना ही पड़ेगा कि वर्तमान भौतिक विज्ञान का एक सुनिश्चित 'दर्शन' है । ९. फिजिक्स एण्ड फिलोसोफी, पृ० १६१ । २. फिलोसोफी ओफ फिजिकल साईन्स, प्रिफेस, पृ० ७ ! Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003127
Book TitleJain Darshan aur Vigyan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMahendramuni, Jethalal S Zaveri
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year2008
Total Pages358
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari, Philosophy, & Science
File Size15 MB
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