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जैन दर्शन और विज्ञान खेत में ४० किलो ककड़ी और ७० किलो बैंगन पैदा हुए। इन सब प्रयोगों से ध्वनि से भौतिक प्रभावों की एक झलक मिलती है ।
ध्वनि तरंगों का उपयोग आज अनेक रूपों में हो रहा है। हीरे जैसी कठोरतम वस्तुओं का सूक्ष्म ध्वनि से काटा जा सकता है । पारे और पानी का मिश्रण साधारणतया नहीं होता, पर सूक्ष्म ध्वनि-प्रयोग से यह भी संभव हो सकता है। सूक्ष्मध्वनि से कपड़ों की धुलाई हो सकती है ।
शब्द की शक्ति
एकलय, एक गति से निरन्तर किए जाने वाले सूक्ष्म आघात का चमत्कार वैज्ञानिक प्रयोगशालाओं में देखा जा चुका है। इस प्रयोग की पुष्टि हो चुकी है कि एक टन भारी लोहे का गर्डर किसी छत के बीचोबीच लटका दिया जाय और उस पर पांच ग्राम के वजन वाले कार्क का निरंतर आघात एक गति, एक क्रम से कराया जाए तो कुछ ही समय बाद गर्डर कांपने लगेगा । पुलों पर से होकर गुजरती सेना को पैर मिलाकर चलने से रोक दिया जाता है। कारण यह है कि लेफ्ट राइट के ठीक क्रम से तालबद्ध पैर पड़ने से जो एकीभूत शक्ति उत्पन्न होती है, उसकी सामर्थ्य इतनी अद्भुत एवं प्रचंड होती है कि उसके प्रहार से मजबूत पुलों के भी टूटकर गिर पड़ने की संभावना बन जाती है। इसी प्रकार मंत्र जप के क्रमबद्ध उच्चारण से भी एक तापक्रम उत्पन्न होता है । फलस्वरूप शरीर के अन्तः संस्थानों में विशिष्ट प्रकार की हलचलें उत्पन्न होती हैं जो आंतरिक मूर्च्छना को दूर करने एवं सुषुप्त क्षमताओं को जागृत करने में सक्षम रहती हैं ।
पदार्थ-विज्ञान के विशेषज्ञ जानते हैं कि इलेक्ट्रो-मैगनेटिक वेब्स पर साउण्ड को सुपर-इम्पोज कर रिकार्ड कर लिया जाता है। फलस्वरूप वे पलक मारते ही सारे संसार की परिक्रमा कर लेने जितनी शक्ति प्राप्त कर लेती हैं । इन शक्तिशाली तरंगों के सहारे ही अंतरिक्ष में भेजे गए राकेटों की उड़ान को धरती परसे नियंत्रित कर उन्हें दिशा देने, उनकी आंतरिक खराबी दूर करने का प्रयोजन पूरा किया जाता
है ।
इस तरह हम देखते हैं कि शब्द-शक्ति केवल संहारक ही नहीं है । उसके कुछ रचनात्मक उपयोग भी हैं । इस दृष्टि से मंत्र - शास्त्र का अध्ययन एक विशेष महत्त्व रखता है । भाषा - - विवेक के अन्तर्गत उसका अध्ययन और भी
महत्त्वपूर्ण है ।
मंत्र ।
शब्द - शक्तियों के दो चामत्कारिक रूप हैं- एक काव्य और दूसरा काव्य में स्तुतियां - स्रोत आदि आते हैं ।
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