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________________ २०१ विज्ञान के संदर्भ में जैन जीवन-शैली महीनों तक रोगी के घाव नही भर पाते थे, वहीं जब ध्वनि-ऑपरेशन के बाद एक या दो दिनों में ही घाव ठीक हो जाते हैं। यदि आंख में कोई वस्तु चली जाए या आंख के भीतरी भाग में कोई गांठ या ऐसी कोई चीज (विकार) उभर जाए तो शल्य-क्रिया के लिए आवश्यक माप-जोख भी पराश्रव्य ध्वनि की मदद से किया जाने लगा है। स्त्रियों, विशेषकर गर्भवती स्त्रियों के रोगों के निदान में पराश्रव्य ध्वनि महत्त्वपूर्ण भूमिका निभा रही है। इसकी मदद से गर्भ में भ्रूणों की संख्या ज्ञात की जा सकती है। जब किसी गर्भवती का ऑपरेशन करना होता है तो सर्वाधिक महत्त्वपूर्ण बात है-भ्रूण के प्लेसेन्टा की स्थिति को जानना। पराश्रव्य ध्वनि ने यह काम आसान कर दिया है। यदि भ्रूणों में कोई विकार हो तो उसे भी पराश्रव्य ध्वनि की मदद से दूर किया जा सकता है। अल्ट्रासोनिक कार्डियोग्राफ हृदय की जांच के लिए चिकित्सक अकसर ई. सी. जी. (इलेक्ट्रो कार्डियोग्राफ) का सहारा लेते हैं। अब यह कार्य ध्वनि-तरंगें करने लगी हैं। ध्वनि-तरंगों से प्राप्त लेख 'अल्ट्रासोनिक कार्डियोग्राफ' कहलाता है। ध्वनि के गतिमान बिन्दुओं को एक निर्धारित वेग से चलने वाली फिल्म पर अंकित कर यह कार्डियोग्राफ प्राप्त किया जाता ध्वनि-तरंगों से सूक्ष्म रक्तवाहिकाओं का भी रक्तचाप मालूम किया जा सकता है। धमनियों में कहीं कोई खराबी आ गयी हो, तो उसे भी ध्वनि-तरंगें खोज निकालती हैं। इस विधि को 'ए स्कोन' विधि कहते है। शरीर के अन्य अंगों जैसे यकृत वृक्क व अग्न्याशय के रोगों को ध्वनि-तरंगें पहचान लेती हैं। शरीर में कहीं भी रसोली हो, ये तरंगें तुरन्त उसका पता-ठिकाना बता देती है। सोवियत वैज्ञानिकों ने ध्वनि-तरंगों की मदद से हड्डी या ऊतकों को जोड़ने की नयी तकनीक विकसित की है। इस पद्धति से बांह, हंसुली तथा पसलियों का इलाज किया जाता है। सोवियत अनुसन्धानकर्ताओं ने एक और नयी खोज की है। उन्होंने पराश्रव्य ध्वनि से ऊतक काटने की ऐसी पद्धति खोजी है, जिसमें मेहनत तो कम लगती ही है, ऊतकों को हानि नहीं के बराबर पहंचती है। साथ ही कटाई में सफाई भी उच्च स्तर की होती है। 'ध्वनिजन्य तरंगों का मानव-शरीर पर होने वाला प्रभाव' विषय पर पचीस वर्षों तक गहन अध्ययन करने के बाद, इटालियन वैज्ञानिक डॉ. लेसरल सारियो ने प्रमाणित किया है कि Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003127
Book TitleJain Darshan aur Vigyan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMahendramuni, Jethalal S Zaveri
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year2008
Total Pages358
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari, Philosophy, & Science
File Size15 MB
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