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विज्ञान के संदर्भ में जैन जीवन-शैली
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जायें-क्या यह नेक है? सचमुच भाषा - विवेक का यह एक बहुत बहुत बड़ा निदर्शन है ।
धीमें बोलने का अभ्यास करें
जब भी हम बोलते हैं तो हवा में ध्वनि तरंगें बनती हैं। वे तरंगें पूरे पर्यावरण पर आघात करती है । आज उसे बहुत सूक्ष्मता से माप लिया गया है। उसका वैज्ञानिक मानक है- डेसीबल । वैज्ञानिकों के ध्वनि के विविध रूपों को डेसीबल के रूप में इस तरह व्यक्त किया है
अतिसूक्ष्म श्रवणेन्द्रिय से ज्ञात होने वाली आवाज
मनुष्य के हृदय की धड़कन
पेड़ पत्तों की सरसराहट
रेफ्रिजेटर की गुनगुनाहट कुत्ते का भौंकना
से भरी आवाज
तेज दौड़ने वाली ट्रक की आवाज
बड़े कारखानों की आवाज
जेट विमान की आवज
रॉक एंड रोल की तीव्र संगीत
राकेट की आवाज
डेसीबल
१
१०
२०
यह एक वैज्ञानिक तालिका है जब भी हम बोलते हैं, तो ध्वनि तरंगें पैदा होती हैं। हम जोर से बोलेंगे, तो ध्वनि तरंगें जोर से उठेगी, वायु प्रदूषण बढ़ेगा। धीमे बोलने से हम वायु प्रदूषण से बच सकते हैं।
३०-४०
६५
८३-८९
९०
१२०
१२०
१३८
१९५
तीव्र आवाज से आदमी की ऊर्जा तो क्षीण होती ही है उसका विचार-तंत्र भी प्रभावित होता है। उससे अभिव्यक्ति का तारतम्य खंडित हो जाता है। धीमे बोलकर आदमी अपने वक्तव्य को ज्यादा प्रभावी ढंग से प्रस्तुत कर सकता है। यह एक बहुत की आध्यात्मिक प्रक्रिया है ।
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बातचीत करते समय भारतीय लोग बड़े जोर से बोलते हैं। उससे बिना मतलब ऊर्जा नष्ट होती है । विदेशी लोग प्रायः धीमे-धीमे बोलते हैं । शायद दो आदमियों की बात तीसरे आदमी के कानों में नहीं पड़ती। इससे दूसरों को बिना मतलब विक्षेप नहीं होता ।
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